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तृतीय स्तबक ] भाषानुवादसहिता
६. निर्गुणस्याऽप्युपास्यत्ववादः विद्यारण्यमुनीन्द्राः श्रवणस्येवाऽऽत्मविद्यायाम् । निर्गुणविषयोपास्तेर्मुख्यामुपकारितामाहुः ॥ १३ ॥
७. ब्रह्मसाक्षात्कारकारणवादः अथ किं साक्षात्कारे करणं ब्रह्मैकगोचरे ब्रूहि । ब्रुवते केचित् प्रत्ययपौनःपुन्यं प्रसंख्यानम् ॥ १४ ॥
इत्थं श्रवणादेरेव ज्ञानसाधनत्वे निरूढेऽपि श्रवणादिवन्निर्गुणब्रह्मोपास्तेरपि तत्साधनत्वमिति मतं दर्शयति-विद्यारण्येति । प्रश्नोपनिषदि यः पुनरेतं त्रिमात्रेणामित्येतेनैवाऽक्षरेण परं पुरुषमभिध्यायीत' इति निगुणोपासनां प्रकृत्य अनन्तरं 'स एतस्माज्जीवधनात् परात्परं पुरिशयं पुरुषमीक्षते' इति तत्समानकर्मसाक्षा स्कारफलकीर्तनादिति भावः ॥ १३ ॥
ब्रह्मसाक्षात्कारप्रमासाधकेषु निर्णीतेषु तत्साधकतमनिर्णिनीषया पृच्छतिअथ किमिति । उत्तरमाह-ब्रुवत इत्यादिना । विधुरकामिनिसाक्षात्कारे करणत्वेन
श्रवणादिकी ज्ञानसाधनता निरूढ़ होनेपर भी श्रवणादिकी नाई निर्गुण ब्रह्मोपा. समा भी ज्ञानकी साधन होती है, ऐसा मत दर्शाते हैं-'विद्यारण्य.' इत्यादिसे ।
विद्यारण्यमुनि श्रवणादिके समान निर्गुण ब्रह्मविषयक उपासनामें मुख्य उपकारिता कहते हैं अर्थात् निगुण ब्रह्मकी उपासनासे भी ब्रह्मसाक्षात्कार होता है, ऐसा कहते हैं, क्योंकि प्रश्नोपनिषद्, 'यः पुनरतं त्रिमात्रेणो. मिस्यतेनैवाऽतरेण परं पुरुषमभिध्यायीत' ('जो त्रिमात्र ॐ इस अक्षरसे पर पुरुषका अभिध्यान करता है ) यों निर्गुणोपासनाका उपक्रम करके ‘स एतस्माज्जीवघनास्परात्परं पुरिशयं पुरुषमीक्षते' (वह इस जीवधन परसे पर पुरिशयदेहस्थित-पुरुषको देखता है ) इस प्रकार श्रवणके समान उपास्ति-कर्मका भी साक्षात्काररूप फल कहा है ॥ १३ ॥
ब्रह्मसाक्षात्काररूप प्रमाके साधकोंका निर्णय करके अब उस साक्षात्कारके साधकतमका निर्णय करनेके लिए पूछते हैं—'अथ किम्' इत्यादिसे ।
ब्रह्मकगोचर साक्षात्कारके उत्पन्न होने में प्रकृष्ट उपकारक कौन है ? उसे कहिये, कहते हैं-इस विषयमें कई एकका मत है कि प्रत्ययका पुनःपुनरावर्तनरूप प्रसंख्यान ब्रह्मसाक्षात्कारका परम कारण है । जैसे विधुरके कामिनीसाक्षात्कार में प्रत्ययावृत्तिलक्षण
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