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महावीर स्वामीके पास आकर रोने लगे। तब महावीर स्वामीने उनसे कहा कि तुम मेरे भद्रपरिणामी शिष्य 'सिंह' नामक साधुको बुलाओ। तब उन्होंने 'सिंह' नामक साधुसे कहा कि तुमको महावीर स्वामी बुला रहे हैं।
तब सिंहमुनि महावीर स्वामीके पास आया। महावीर स्वामीने उससे कहा कि सिंह ! तू मुझे छह मास तक ही जीवित मत समझे । मैं भभी सोलह वर्षतक और हाथी के समान विहार करूंगा ।
इससे आगे * १२६९ वें पृष्ठपर यों लिखा है -
"तं गच्छहणं तुमं सीहा मिढियगाम जयरं रेवतीए गाहावइणीए गिहे, तत्थणं रेवतीए गाहावईए मम अहाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया तेहिं णो अहो अस्थि । से अण्णे परियासि मज्जार कडए कुक्कुडमंसए तमाहाराहि, तेणं अहो। - इसकी संस्कृतच्छाया इसके नीचे यों लिखी है
तद्गच्छ त्वं सिंह ! मंढिकग्रामे नगरे रेवत्याः गृहपतिपत्न्याः गृहे, तत्र रेवत्या गृहपतिपन्या ममाथं द्वे कपोतकशरीरे उपस्कृते ताभ्यां नैवार्थोस्ति, अथान्यं परिवासित मार्जारकृतं कुक्कुटमांसकं तमाहर ( आनय ) तेनार्थोऽस्ति । __ अर्थात् -इसलिये हे सिंह मुनि ! मंढिकगांव नामक नगरमें रेक्ती गृहस्वामिनीके धर तु जा। उस रेवतीने मेरे लिये दो कबूतरोंका शरीर पकाया है उससे कुछ प्रयोजन नहीं किन्तु उसके यहां अपनी बिल्लीके लिये बनाया हुआ बासा (एक रातका रकाबा हुआ ) मुर्गेका ( कुक्कुट का ) मांस भी रक्खा है उसको ले आ उससे का है।
यह सुनकर सिंह मुनि प्रसन्न हुआ और वहां से चलकर मंढिक गांवमें रेवतीके घर पहुंचा । रेवती सिंह मुनिको अपने घर आया देखकर प्रसन्न हुई और उठकर कुछ आगे चलकर उसने सिंह मुनिसे पूछा कि आप क्यों पधारे हैं।
तब सिंह मुनि १२७० तथा १२७१ वें पृष्ट र यों कहता है" तुझं देवाणुपिए ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्टाए
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