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यथाख्यात चारित्र प्राप्त हो जानेपर पूर्ण चारित्र कहा जाता है। परन्तु स्त्रियोंको देशचारित्र ही होता है, सकलचारित्र भी नहीं होता। इसी कारण उनके पांचवें गुणस्थान से आगे कोई गुणस्थान नहीं होता । इस लिये सम्यक्चाग्त्रि पूर्ण न हो सकनेके कारण स्त्रियोंको मोक्ष मिलना असंभव है। ___ स्त्रियों को सकलचारित्र क्यों नहीं होता ? इस प्रश्नका उत्तर यह है कि स्त्रियां ठीक तौरसे महाव्रत धारण नहीं कर सकती। आर्यिकाओं के (साध्वी जो महाव्रत कहे जाते हैं वे उपचारसे कहे जाते हैं, वास्तवमें उनमें महाग्रत नहीं होते । स्त्रियों को महाव्रत न हो सकनेका कारण यह है कि वे पूर्णरूपसे परिग्रहका त्याग नहीं कर पती हैं। उनके पास पहननेके कपडे रूप परिग्रह अवश्य होता है। उत्कृष्ट जिनकल्पी (श्वेताम्ब. रोंके माने हुए ) साधु के समान वे समस्त वस्त्र त्याग कर नम होकर नहीं रह सती । इस क रण उनके पग्ग्रिहत्याग महाव्रत नहीं होता है
और उसके न होने से महिंसा महाव्रत भी नहीं होता । तथा विना महाव्रत पालन किये छठा प्रमत्त गुणस्थान भी कैसे हो सकता है ? अर्थात नहीं होता । __ स्त्रियां पुरुषोंके समान लाजा परिषह नहीं जीत सस्ती, न वे नम परीषह सहन कर सकती हैं क्योंकि उनकी शारीरिक रचना ऐसी है कि जिससे उन्हें अपने गुह्य अंग वस्र से अवश्य छिपाने पडते हैं उनको छिगये विना उनका ब्रह्मचर्य व्रत स्थिर नहीं रह सकता। उनके खुले हुए गुप्त मग उनके तथा अन्य पुरुषों के कामविकार उत्पन्न करानेके कारण हैं । अत: वस्त्र पहन कर उन अंगोंको ढकना उनका प्रधान कार्य है। इस कारण स्त्रियोंके आचेलक्य ( वस्त्ररहितपना) नामक पहला कल्प नहीं होता है और न मोक्षके कारणभूत उत्कृष्ट जिनकल्पी साधुकी नम दशा ही स्त्रियोंसे सघ सकती है इस कारण उनके परिग्रहत्याग महाना नहीं हो सकता ।
आचारांगसूत्र ' श्वेताम्बरीय ग्रंथ ) के आठवें अध्यायके सातवें उद्देशके ४३४ वें सत्रमें १२६ वें पृष्ठपर लिखा है कि
" अदुवा तत्थ परकमंतं मुज्जो अचेलं तणफासा संती
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