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है ? अर्थात् वह केवलज्ञान भी धारण नहीं कर सकती । अत एव उसको मोक्ष भी नहीं हो सकती ।
यह तो रहा कर्म सिद्धान्तका अटल नियम, जिसको कि कोई मिटा नहीं सकता और न कम अधिक या कुछका कुछ कर सकता है । किन्तु इसके सिवाय हम यदि स्त्रियों के ज्ञनकी दृष्टिसे देखें तो भी मालूम होता है कि पुरुषोंकीसो प्रबल ज्ञान शक्ति स्त्रियों में नहीं होती है। संसार में जितने भी सिद्धान्त, धार्मिक, लौ कक तथा राजनैतिक नियम बनकर प्रचलित हुए हैं वे सब पुरुषोंके प्रखर बुद्धि बलका ही फल है । समस्त दर्शनों की रचना पुरुषने ही की है। मंत्र, यंत्र, योग, जादूगरी, वैद्यक, गणित, ज्योतिष, व्याकरण, संगीत आदि विषय पुरुषोंने ही प्रचलित किये हैं । रेल, तार, टेलीफोन, ग्रामोफोन, जहाज, वायुयान, तोप, बंदूक, मोटर अदि भगत प्रकार के उपयोगी यन्त्र पुरुषोंने ही बनाये हैं । आजतक जितने भी आविष्कार हुए हैं तथा होरहे हैं वह सब पुरुषों की बुद्धि के ही मधुर फल हैं। ऐसा कोई आश्चर्यजनक पदार्थ नहीं दीख पडता है जो कि स्त्रियोंने अपनी बुद्धिसे तयार किया हो ।
इसलिये लौकिक दृष्टिसे भी पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियां बुद्धिहीना यानी थोडे ज्ञानवाली ठहरती हैं। और जब कि वे हीन ज्ञानवाली होती हैं तो फिर उनमें केवलज्ञानका विकाश कैसे हो सकता है ? और बिना केवलज्ञान हुए वे मुक्ति भी कैसे पा सकती हैं ?
अत एव सिद्ध हुआ कि स्त्रियोंमें अल्प ज्ञानशक्ति होनेके कारण उनको मोक्ष नहीं हो सकती ।
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स्त्रियोंमें संयमकी पूर्णता नहीं होती ।
मोक्ष प्राप्त करनेका प्रधान साधन सम्यक्चारित्रकी पूर्णता । सम्यक् चरित्र पूर्ण हुए विना कर्मों का क्षय नहीं होता I वैसे तो सम्यकचा रेत्र चौदहवें गुणस्थान में पूर्ण होता है किन्तु मोहनीय कर्म नष्ट होजाने से बारहवें क्षीणकषाय
गुणस्थानमें
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