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नामें रहकर अच्छा किया है और संस्कृत भाषाके अच्छे विद्वान् हैं । कुछ दिन जैन गजटका संपादन किया है और कुछ दिन वंबईमें रहकर एक मासिक पत्र स्वतंत्रतासे चलाया था। मुलतानकी तरफ श्वेतांबर साधुओंका आना जाना अधिक रहता है। उनके . द्वारा दिगंबर संप्रदायपर झूठे आक्षेप किये जाते हैं । और कुछ श्वेतांबर ग्रंथकारोंने भी दिगंबर मतकी बहुतसी बातोंका यद्वा तद्वा खंडन कर संकुचित बुद्धिका परिचय दिया है । यह बात इस पुस्तकके वाचनेसे मालूम होगी। इस लिये भी यह समीक्षा लिखनेका कारण उपस्थित होगया जान पडता है। परंतु इस निमित्तसे सारे ही समाजको लेखकने जो यह उपकार पहुंचाया है वह स्तुत्य है।
वंशीधर पंडित.
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पुस्तक लेखकका अन्तिम-निवेदन. इस संसाररूपी गहन बनमें इस संसारी जीवका भला करने वाला केवल एक धर्म है । धर्मके अवलम्बनसे ही आत्मामें अच्छे गुणोंका विकाश होता है और अशान्ति, अधीरता, ईर्ष्या दम्भ, कपट आदि कुत्सित भाव. भाग जाते हैं व शांति, धैर्य, सत्य, उपकार आदि उज्वल गुणोंका प्रादुर्भाव होता है। इस कारण आत्मिक उन्नति करने के लिये धर्मका साधन एक बहुत आवश्यक कार्य है। . संसारकी अनेक योनियोंकी अपेक्षा इस मनुष्य योनिके भीतर आकर आत्माको धर्मसाधनके लिये सबसे अच्छा, सुलभ मौका मिलता है क्योंकि धर्मसाधनके सभी साधन जीवको इस योनि में मिल जाते हैं जो कि देवयोनिमें भी दुर्लभ हैं। इस
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