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असाधारण, शुभ अनंत नोकर्म वर्षणाएं आती रहती हैं। इस कारण कवलाहार न करनेपर भी नोकर्म आहार उनके होता है। इसीलिये उनका परम औदारिक शरीर निवल नहीं होने पाता । आहार ६ प्रकारका ग्रंथोंमें बतलाया है उनमें से नोकर्म आहार केवली भगवान्के बतलाया है
णोकम्म कम्महारो कवलाहारो य लेप्पमाहारो। उज्झमणोविय कमसो आहारो छब्बिहो यो । णोकम्मं तित्थयरे कम्मं णारे य माणसो अमरे । कवलाहारो परपसु उज्झो परखीय इगि लेऊ ॥
अर्थात्-आहार ६ प्रकारका है, नोकर्म माहार, कर्माहार, कवलाहार, लेप्य आहार, ओज आहार, और मानसिक आहार इनमेंसे नोकर्म थाहार केवलज्ञानियोंके होता है, कर्मआहार नाकी जीके होता है, मानस आहार देवोंके, कवलाहार मनुष्य तियञ्चोंके, ओज माहार ( माताके शरीरकी गर्मी ) अंडेमें रहने वाले तथा लेप्य ( मिट्टी पानी आदिका लेप ) आहार वृक्ष भादि एकेंद्रिय जीवोंके होता है । ___ इस कारण औदारिक शरीर केवल कवलाहारसे ही रह सके यह बात नहीं है किन्तु नोकर्म, लेप्य और भोज माहारके कारण भी बौदारिक शरीर पुष्ट होता है। अंडे के भीतर रहनेवाले जीवोंको उनकी मादाके शरीरकी गरमी से ( सेनेसे ) ही पुष्टि मिल जाती है इस कारण उनका वह मादा. का सेनेरूप अोज ही आहार है। वृक्षोंको मिट्टी, खाद पानी मावि ही पुष्ट कर देता है इस कारण उनका वह लेप ही माहार है। साधारण मनुष्यों तथा तियचोंका शरीर ग्रासरूप भोजन लेनेसे पुष्ट होता है इस कारण उनका कवलाहार ही पोषक है। और केवकज्ञानीका परम भौदारिक शरीर क्षायिक लामरूप लब्धिके कारण माने. वाली प्रतिसमय शुभ, मसाधारण नोकर्म वर्गणाओंसे ही पुहि पाता है इस कारण उनका नोकर्म आहार ही उनके होता है। इसी कारण कवलाहार न होनेपर भी केवलज्ञानी भगवान्का परमौदारिक शरीर नोकर्म माहारसे गहरा रहता है।
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