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मुनि आत्मारामनी का उसी ५७१ वें पृष्ठ में यह भी कहना है कि " सामान्य केवरियों के तो विविक्त देश में ( एकान्तमें ) मलोत्सर्ग करनेसे ( टट्टी पेशाब करनेसे ) दोष नहीं है, " इसलिये यह भी मालूम हुआ कि सामान्य केवलियोंके टट्टी पेशाब करनेको मनुष्य उस एकान्त स्थानमें जाकर देख भी सकते हैं ।
छठे - केवली भगवानको भोजन करानेके लिये कोई मुनि पासमें रहता होगा जो कि केवली भगवानू के हाथमें भोजन रखता जाता होगा क्योंकि केवली पाणिपात्र ( हाथमें ) भोजन करनेवाले होते हैं, पात्रोंमें भोजन नहीं करते । जैसा कि आत्मारामजी ने तत्वनिर्णयप्रासाद के ५६७ पृष्ठपर लिखा है कि " अर्हत भगवंतोंको पाणिपात्र होनेसे " । इसलिये भोजनपान करानेवाले एक मनुष्यकी आवश्यकता भी हुई ।
सातवें— बात, पित्त कफ के विषम हो जानेसे अथवा आहार रूखा सूखा, ठंडा, गर्म आदि मिलने से केवली के पेटमें कुछ गढबड भी हो सकती है जिससे कि केवली भगवान्को पेचिष आदि रोग भी हो सकते हैं । तब फिर उन रोगोंको दूर करने के लिये औषध लेनेकी आवश्यकता भी केवलीको होगी जैसे कि आप श्वेतांबरी भाइयोंके कहे अनुसार महावीर स्वामीको हुई थी ।
आठवें — नगर में या इधर उधर अभि लगने, युद्ध आदि उपद्रव होनेसे अन्तराय हो जाने के कारण किसी दिन बहार नहीं भी मिल सकता है जिससे कि उस दिन केवली भगवान् भूखे भी रह सकते हैं।
नौवें वैक्रियिक शरीरी देव ३२ । ३३ पक्ष यानी सोलह साढे सोलह मास पीछे थोडासा आहार लेते हैं । औदारिक शरीरवा के भोगभूमिया मनुष्य तीन दिन पीछे बेरके बराबर आहार करते हैं और टट्टी पेशाब आदि मल मुत्र नहीं करते। किन्तु केवली भगवान् प्रतिदिन उनसे कई गुणा अधिक बाहार करते हैं तथा प्रतिदिन टट्टी पेशाब भी उन्हें करना पडता है । इस लिये अनंत सुखवाले केवली भगवान से
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