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इतनी नीची दशा के रहते हैं कि कोईभी वस्त्रधारी सभ्यजन उच्च
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इन्डियन सेन्टिके ब्रेट वेवर द्वारा लिखित
तर दशापर पहुंचनेकी आशा नहीं कर सकता । (जुलाई १९०० ) पुस्तक नं. ३० में अल " भारतमें धार्मिक इतिहास " नामक लेखमें
लिखा है कि
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" दिगम्बर लोग बहुत प्राचीन मालम होते हैं क्योंकि न केवल ऋग्वेद संहिता में इनका वर्णन " मुनयः वातवसना: " अर्थात् पवन ही हैं वस्त्र जिनके इस तरह गाया है किंतु सिकंदर के समय में जो हिंदुस्थानके जैन सूफियोंका प्रसिद्ध इतिहास है उससे भी यही प्रगट होता है । "
रे व जे. टेन्सन डी. डी. प्रेसीडेन्ट रॉयल एशियाटिक सोसायटीने ता. २० अक्टूबर सन १८५३ को एक लेख पढा था जो कि सुसायटी के जर्नल जनवरी १८५५ में छपा है । इस लेख में बौद्धोंके आये हुए ' तित्थिय ' ( तीर्थक ) शब्दका तथा यूनानी ग्रंथों में आये हुए जैन सूफी शब्दका अर्थ क्या है ? इन दोनों शब्दोंका अर्थ दिगम्बर जैन ' ही है अथवा और कुछ ? इस बात पर विवेचन करते हुए भाप एक स्थानयर लिखते हैं कि वे तीर्थक तथा जैनसुफी दिगबर जैन ही थे ।
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आपके मूल लेखका अनुवाद यह है
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इन तीर्थकों में दो बढी विशेष बातें पाई जाती हैं तथा जो जैनियों के सबसे प्राचीन ग्रंथों और प्राचीन इतिहाससे ठीक ठीक मिलती हैं वे ये हैं कि एक तो उनमें दिगम्बर मुनियोंका होना और दूसरे पशुमांसका सर्वथा निषेध । इन दोनों में से कोई बात भी प्राचीन काल के ब्राह्मणों और बौद्धों में नहीं पाई जाती है । "
जैन सूफियोंके विषय में आपने यह " क्योंकि दिगम्बर समाज प्राचीन समय से अब तक बराबर चला आ रहा है । ( लेखमें इसकी पुष्टिके अन्य कारण भी बतलाये हैं ) इससे मैं यह ही तात्पर्य निकालता हूं कि ( पश्चिमीय भारत
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लिखा है
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