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हुआ जो इस प्रकारके कट्टर साधुपनेसे विरुद्ध पहा । इस विमागने अपना नाम ' श्वेताम्बर ' रक्खा। यह बात सत्य मालूम होती है कि अत्यंत शिथिल श्वेताम्बरियोंसे कट्टर दिगम्बरी पहले के
जर्मनी के प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर हर्मन जैकोबीने श्वेताम्बरीय ग्रंथ उत्तराध्ययनका अंग्रेजी अनुवाद किया है उसमें दूसरे व्याख्यान के १३ वें पृष्ठपर उन्होंने लिखा है कि
"जब एक नग्न साधु जमीनपर पडेगा उसके शरीरको कर होगा।" ____ इसके आगे उन्होंने सातवें व्याख्यानके २९६ ३ (२१) पृष्ठपर यों लिखा है
"वह जो कपडे धोता है और संहारता है नग्न मुनि होनेसे बहुत दूर है।"
इस प्रकार एक निष्पक्ष दार्शनिक तत्ववेत्ता विद्वान भी श्वेतांबरीच ग्रंथ द्वारा नग्न दिगम्बर साधुके महत्वका स्पष्ट उल्लेख करता है।
श्रीयुत नारायण स्वामी. ऐयर बी. ए. एल. एल. बी. संयुक्त मंत्री थियोसोफिकल सोसायटी अडयार मदरासने बंबईमें ता. २० से २७ जून सन १९१७ में · हिंदूसाधु के विषयपर व्याख्यान दिये थे उनमेल उन्होंने एक व्याख्यानमें नो कहा था उसका हिंदी अनुवाद यह है कि___" दिगम्बरपना साधुकी सर्वोच्च अवस्था है। साधु उच्च दशापर पहुंचनेके लिये आकाशके समान नग्न हो।"
मिष्टर ई. वेस्टलेक एफ. भार. ए. आई. फोर्डिग ब्रजने लंदनके डेलीन्यूजमें १८ अप्रैल सन १९१३ में लिखा है कि. " इस विषयपर अभ्यास करनेसे मैं कह सकता हूं कि जे. एफ: विस्किनसन साहिबका यह कथन कि जो जातियां वस्त्र नहीं पहनती उनका सञ्चरित्र सर्वसे ऊंचा होता है यात्रियों के द्वारा पूर्ण प्रमाणित है। यह सच है कि वस्त्र पहनना कलाकौशल और उच्च दरजेकी सभ्यतामें माना जाता है । परन्तु इससे स्वास्थ्य और सचरित्र
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