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रखकर गृहस्थों कीसी क्रियाएं रखना सर्वथा अनुचित है।
स्थूलाचार्यका यह उत्तर सुनकर मुनियों ने फिर कहा कि नग्न निर्घय वेश धारण करनेकी तो हमारे शरीर तथा आत्मामें शक्ति नहीं । और गृहस्थ चारित्र इस लिये नहीं पालना चाहते हैं कि फिर हमारा अपमान होगा । संसार हमारी हीन दशा देखकर हसी उडावेगा। फिर हमको कोई भी महाव्रतधारी मुनि न कहेगा । और इसी कारण हमारा फिर इतना भादरसत्कार, सम्मान भी नहीं होगा।
तब स्थूलाचार्यने उत्तर दिया कि यदि तुम लोग गृहस्थ चारित्र पालना नहीं चाहते और अपने मुनि चारित्रको भी निर्दोष नहीं करना चाहते तो इसका अभिप्राय यह है कि यह भ्रष्ट साधुवेश तुम केवल संसारको धोखा देनेके लिये ही धारण करते हो । तुमारे हृदयमें सच्चा वैराग्य भाव नहीं है । इस कारण कहना होगा कि तुम इस मुनिवेशसे केवल उदरपूर्ति करना चाहते हो, लोगोंमें बडप्पन प्राप्त करना चाहते हो । आत्मकल्याणका भाव तुझारे हृदयमें रंचमात्र भी नहीं है।
स्थूलाचार्य के ऐसे खरे वचन सुनकर उन साधुओं से २-१ साधुको बहुत क्रोध हो या । वह स्थूलाचार्यकी वृद्धदशा, आचार्य पदवीका तथा पुज्यताका कुछ भी खयाल न करके उत्तेजित होकर बोल उठे कि यह तो बुढ़ा हो गया है । इसकी बुद्धि भी बुढी हो गई है। अब इसको हित अहितका विचार करनेकी जरा भी शक्ति नहीं रही । इसी कारण यह ऐसा अंड बंड बोल रहा है। इसकी बातें सुनना पाप है तथा इसका मुख देखना भी अशुभ है । यह बुढा जब तक रहेगा तब तक हम लोगों को शान्ति प्राप्त नहीं होगी।
ऐसा कहते हुए एक क्रूरचित्त साधुने जो कि स्थूलाचार्य का ही शिष्य था लाठीके दश पांच अच्छे प्रहार स्थूलाचार्य ( अपरनाम शांति
आचार्य ) के शिर पर कर दिये जिसको कि उनका दुर्बल वृद्ध शरीर न सह सका और उनका प्राणपक्षी भसार शरीरको छोडकर उड गया ।
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