________________
( १६ )
बिगाड़ देती है यानी मुखकी आकृति फीकी कर देती है, फिर शरीर कृश ( दुबला ) कर देती है, काम वासनाका नाश कर देती है, भूख से ज्ञान चला जाता है, भूख तपको नष्ट कर देती है, धर्मका निर्मूल क्षय कर देती है, भूख के कारण पुत्र, भाई, पत्नीमें भेदभाव ( कलह ) हो जाता है, भूख लज्जाको भगा देती है, अधिक कांतक कहें प्राणोंका भी नाश कर देती हैं। ऐसे समस्त दोष उत्पन्न करनेवाली क्षुत्रा ( भूख ) मुझे व्याकुल कर रही है ।
भूख जीव की क्या दशा होती है इसको एक कविने इन मार्मिक शब्दों में यों प्रगट किया है 1
त्यजे क्षुधार्ता महिला स्वपुत्रं खादेःक्षुधार्ता भुजगी स्वमण्डम् | बुभुक्षितः किं न करोति पापं
क्षीणा नरा निष्करुणा भवन्ति ॥
1
यानी - भूख से तडफडाती हुई माता अपने उदर से निकाले हुए प्रियपुत्रको छोड देती हैं । मुखसे व्याकुल सर्पिणी अपने ही अंडोंको खा जाती हैं । विशेष क्या कहें भूखा मनुष्य सकता ? (यानी - सभी अनर्थ कर सकता है। होजाते हैं ।
1
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
कौनसा पात्र नहीं कर क्योंकि भूखे मनुष्य निर्दय
ऐसी घोर दुखदायिनी भूख परिषद यदि केवलज्ञानीको बदना उत्पन्न करे तो किर केवलीका अनन्तसुख क्या कार्यकारी होगा ? इसका उत्तर श्वेताम्बरी भाई देवें,
भूख अग्नी दुखवेदना केवलीको भी आपके अनुसार कष्ट तो देती है क्योंकि आप उनके क्षुधापरीषह नाममात्रको ही नहीं किन्तु कार्यकारिणी भी बतलाते हैं । फिर जब कि केवली भूखकी वेदनासे दुखी होते हैं व तब उनको पूर्ण सुखी बतलाना व्यर्थ है । हमारे तुझा रे समान अलामुखी एहु | जैसे हमको भूख, प्यास लगती है खा पी लेने पर शान्त हो जाती है आपके कहे अनुसार केवलीकी भी ऐसी ही दशा रही ।
www.umaragyanbhandar.com