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परम पवित्र परिणाम रहते हैं और इस कारणसे ( आपके कहे अनुसार ) भाव पैदा करनेवाले अशुभ कर्मका बहुत मंद उदय रहता है । इसलिये भी केवली भगवान्को भूख नहीं लग सकती जिससे कि वे कालाहार भी नहीं कर सकते। ___ इसका उदाहरण यह है कि छठे, सातवें, आठवें तथा नवम गुणस्थानमें ( कुछ स्थानोंमें स्त्री, पुरुष, नपुंसक भाव वेदों का मंद उदय है इस कारण उन गुणस्थानवाले मुनियों के विषय सेवन करने की इच्छा नहीं होती है । यदि वेदनीय कर्मके मंद उदयसे केवली भगवान्को भूख लग सकती है तो श्वेताम्बरी भाइयोंको यह भी कहना पडेगा कि वेदोंके मंद उदय होनेसे छठे, सातवें आठवें, नववें, गुणस्थानवर्ती साधुओंके भी विषय सेवन की (मैथुन करनेकी) इच्छा उत्पन्न होती है । और इसी कारण उनके धर्म ध्यान तथा शुक्ल ध्यान नहीं है । वेदनीयकर्म केवलीके भूख उत्पन्न नहीं कर सकता २
असाता वेदनीय कर्म के उदयसे केवली भगवान को भूख इस लिये भी नहीं लग सकती कि उनके मोहनीय कर्म नष्ट हो चुका है। वेदनीय कर्म अपना फल मोहनीय कर्मकी सहायतासे ही देता है। मोहनीय कर्मके विना वेदनीय कर्म वेदना उत्पन्न नहीं कर सकता । गोमटसार कर्मकांडमें लिखा है..
घादिव वेयणीयं मोहस्स वलेण धादर्द जीवं । इदि घादीणं मज्झे मोहस्सादिम्मि पदिदंतु ॥ १८ ॥
अर्थात्-वेदनीय कर्म घाती कर्मोके समान जीवके अव्यावाध गुणको मोहनीय कर्मकी सहायतासे घातता है। इसी कारण वेदनीय कर्म मोहनीय कर्मके पहले एवं घातिया कोके बीचमें तीसरी संख्यापर रक्खा गया है। ___ जबकि केवली भगवानके मोहनीय कर्म बिलकुल नहीं रहा तब वेदनीय कर्म को सहायता भी कहां से मिल सकती है । और जब कि वेदनीय कर्मको मोहनीय कर्मकी सहायता न मिले तब वह वेदना भी कैसे उत्पन्न करसकता है ? यानी-नहीं कर सकता।
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