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छर्दि डारके फिर तू चाखे, अजै तेहि न गिलाना रे ॥ आत्मारामजीने नकल करके इसको यों लिखा हैसब जगमाही जेता पुद्गल, निगल निगल उगलानार । छरद डारकर फिर तृ चाखे, उपजत नाहीं ग्लानारे ॥ पाठक महाशय स्वयं विचार करें, क्या इन दोनो में कोई अन्तर है ? इसके आगे द्यानतरायजीने लिखा है
आठ प्रदेशविना तिहुं जगमें, रहा न कोय ठिकानारे | उपज्या मरा जहां तु नाहीं, सो जाने भगवाना रे || इसके स्थान पर आत्मारामजीने यों लिखा हैचौदा yaaमें एक तिलमात्र, कोइ न रह्या ठीकाणारे । जन्म मरण दोयवार अनंते, जहां न जिया कराना रे || इन दोनों पद्यों में केवल " तिहुं जग और चोदा भुवन का शेष सब समान है । और जो ' चौदह भुवन' शब्द बदला वह वे शिरपेरका | चौदह भुवन कौनसे हैं यह मालुम नहीं हुआ ?
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तदनन्तर पं. द्यानतरायजीने लिखा है
तोहि मरण माता रोई, आंसूजल सग लानारे | अधिक होय सब सागर सेती, अज हूं त्रास न आना रे || इस पद्यकी नकल मुनि आत्मारामजीने इन शब्दों में की हैजनम जनम में माता रोई, आसूनासंख कराना रे । होय अधिक ते सब सागरथी, अजहूं चेत अज्ञानारे ॥ इन दोनों पद्योंमें कुछ भी अन्तर नहीं । द्यानतरायजी के पद्यकी २ - १ शब्द के फेरफारसे पूरी नकल है ।
यह एक पद है जो कि अकस्मात् हमारी दृष्टिमें आगया । संभव हैं इसी प्रकार मुनि आत्मारामजीने अन्य कविताएं भी दिगम्बरी कवियोंकी कविताओंकी नकल करके अपने नामसे लिख दी होंगी । अस्तु ।
इस प्रकरण के लिखनेका हमारे अभिप्राय केवल इतना ही है fr. हमारे अनेक saiबरीय भाई यह कह दिया करते हैं तथा
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