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इसके सिवाय कलिकाल सर्वज्ञ पदवीप्राप्त हेमचन्द्राचार्यने सिद्धहम शब्दानुशासन नामक व्याकरण भी दिगम्बरीय आचार्योंके निर्माण किये हुए व्याकरण की नकल करके बना दिखाया है । शाकटायन तथा जैनेन्द्र व्याकरणके सूत्र भाष्य आदिकी आघोपान्त नकले की है । स्वतन्त्ररूपसे मौलिक ग्रंथ नहीं बनाया है।
नवीन- नकल
अव हम आज २०-२२ वर्ष पहले होनेवाले प्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य श्री आलारामजी के विषयमें ऐसा ही एक उदाहरण पाठकों के सामने रखकर इस प्रकरणको समाप्त करते हैं ।
श्वे० आचार्य आत्मारामजीको श्वेताम्बरी भाई कलिकालसर्वज्ञ लहते हैं । सम्यक्त्वशुल्योद्धार आदि छपे हुए ग्रंथोंके ऊपर यह पदवी छापी भी गई है इस कारण कमसे कम यह तो अवश्य मानना पडेगा कि ये वे० आचार्य भी बहुत भारी विद्वान हुए होंगे इन्होंने कई ग्रंथ लिखे हैं । तदनुसार अनेक पद भी बनाये हैं जो कि श्वेताम्बर आम्नायमें बहुत प्रचलित हैं । सौभाग्यसे आपके रचे हुए पदोंकी संग्रह रूप छपी हुई पुस्तक हमे भी मिल गई जिसका नाम प्रकाशकने ' श्री ६ सम्बंगी आनंदबिजे जी प्रसिद्ध श्री आत्मारामजी कृत सत्रा भेदी पूजा स्तवन ' रक्खा है ।
यह पुस्तक जौहरी हजारीमल रामचन्द्रने काशी में लीथो प्रेस से माथ
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१ - टीप अधिक न लिखकर हम केवल उदाहरण देते हैं । जैनेंद्र व्याकरके कर्ता, हेमचंद्र से बहुत ही पुराने हैं और अष्ट महाव्याकरणोंमें जैनेन्द्रका ही उल्लेख आया है। इस जैनेंद्रका प्रथम सूत्र है -
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सिद्धिरनेकान्तात ' ।
इसकी नकल हेमचंद्रने की है वह,
सिद्धिः स्याद्वादात्
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क्या इन दोनों सूत्रों में जरा भी फर्क कहा जा सकता है ? नहीं । इसी प्रकार ज्ञानार्णवकी नकल योगार्णव है ।
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