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स्वातंत्र्येणाङ्गत्वेन संशयेनैकपद्येनवा अलंकाराणामेकत्रावस्थानं संकरः। इसकी नकल हेमचन्द्राचार्यने इन शब्दोंमें की है--
स्वातन्त्र्याङ्गत्वसंशयकपधैरेषामेकत्र स्थितिः संकरः ।
दोनों लक्षण बिलकुल एक सरीखे हैं। इसी प्रकार अन्य अलंकारों के लक्षण भी हेमचन्द्राचार्यने कतिपय शब्दोंके हेरफेरसे महाकवि वाग्भट्टके उल्लिखित लक्षणों को ही लिख दिखाया है।
इसके पीछे यदि रसों के लक्षणोंपर दृष्टिपात किया जाय तो वहांपर भी यह ही हाल है । वहां पर तो हेमचन्द्राचार्य ने कविवर वाग्भट्ट के उल्लिखित लक्षणोंकी समूची ज्योंकी त्यों नकल कर डाली है । प्रथम ही करुणरसको देखिए, वाग्भट्टने लिखा है
इष्टवियोगानिष्टसं [प्र] योगविभावो दैवोपालंभनिःश्वासतानवमुखश्लेषस्वरभेदाश्रुपातवैवर्ण्यप्रलयस्तम्भ (वै) कम्पभूलुठनविलापगात्रांशाद्यश्रुभावनिर्वेदग्लानिचितौत्सुक्यमोहश्रमत्रासविषाददैन्यव्याधिजडतो-मादापस्मारालस्यमरणप्रभृतिदुःखमयन्यभिचारी चित्तवेधुर्यलक्षणः शोकाभिधानः स्थायिभावश्चर्वणीयतां गतः करुणरसतां याति ।
इसके स्थानपर हेमचंद्राचार्य ने जो कुछ लिखा है वह उनके काव्यानुशासनके ७६ वें पृष्ठपर यों है-- ___इष्टवियोगानिष्टसंप्रयोगविभावो देवोपालम्भनिःश्वासतानवमुखशोषणस्वरभेदाश्रुपातवैवर्ण्यप्रलयस्तम्भकम्पभूलुठनगात्रसंसानंदाद्यनुभावो निवे. दग्लानिचिन्तीत्सुक्यमोहश्रमत्रासविषाददैन्यव्याधिजडतोन्मादापस्मारालस्य. मरणप्रभृतिदुःस्वमयव्यभिचारी चित्तवैधुर्यलक्षणः शोकः स्थायीभावश्चर्वणीयतां गतः करुणो रसः
उपर्युक्त दोनों लक्षण बिलकुल समान हैं इसको साधारण पुरुष भी समझ सकता है । इसके पीछे वीररस का लक्षण वाग्भट्ट कविने इन शब्दोंमें किया है
प्रतिनायकवर्तिनयविनयसंमोहाध्यवसाबलशक्तिप्रतापप्रभावविक्रमाधिक्षेपादि विभावः स्थैर्योदार्यधैर्यगाम्भीर्यशौर्यविशारदाद्यनुभावो धृतिस्मृत्यौग्यग
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