________________
( १९९) विमृष्टविधेयांशविरुद्धबुद्धिकुन्नेयार्थनिहितार्थाप्रतीतग्राम्यसंदिग्धावाचकत्वानि शब्ददोषाः पदे वाक्ये च भवन्ति ।
इसके स्थानपर हेमचन्द्राचार्यने यह लिखा है । __ अप्रयुक्ताश्लीलासमर्थानुचितार्थश्रुतिकटुक्लिष्टाविमृष्टविधेयांशविरुद्धबुद्धिकृत्वान्युभयोः ।
दोनों वाक्य एक सरीखे हैं। इसके आगे अलंकारों के रक्षण भी हेमचन्द्राचार्यने वाग्भट्ट कविके लिखे हुए लक्षणों सरीखे ही किये हैं। रूपकालंकारको देखिये
सादृश्या देनारोपो रूपकम् । हेमचन्द्राचार्यने इसको यों लिख दिया है
सादृश्ये भेदेनारोपो रूपकमेकानेकविषयम् दोनों लक्षण शब्द अर्थसे समान हैं । अर्थान्तरन्यास अलंकारका लक्षण महाकवि वाग्भट्टने यह किया है
विशेषस्य सामान्येन समर्थनमर्थान्तरन्यासः साधर्येण वैधर्येण च
इसके स्थानपर हेमचन्द्राचार्य यों लिख गये हैं
विशेषस्य सामान्येन साधर्म्यवैधाभ्यां समर्थनमर्थान्तरन्यासः।
दोनों लक्षण बिलकुल समान हैं । स्मृति अलंकारका लक्षण नब वाग्भट्ट कविने यह लिखा है
सदृशदर्शनात्पूर्वार्थस्मरणं स्मृतिः तब हेमचन्द्राचार्यने भी उसको यों लिख दिया है--
सदृशदर्शनात्स्मरणं स्मृतिः परिसंख्यालंकार वाग्भट्टने यह लिखा है - पृष्टमपृष्टं वा यदन्यव्यवच्छेदपरतयोच्यते सा परिसंख्या । इसकी नकल हेमचन्द्राचार्यने यों की है -
पृष्टेऽपृष्ट वान्यापोहपरोक्तिः परिसंख्या दोनों समान हैं । संकर अलंकारको जब महाकवि वाग्भट्टने इन शब्दों में लिखा है
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com