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बाहरी उपयोगके लिये किसी समय ग्रहण करने हों तो चौमासेमें तो उनका सर्वथा निषेध है
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यहां मांसके साथ साथ मधु और मक्खन का उपयोग भी अपने शरीर के लिये किसी बहुत भारी विशेष अवस्थामें बतलाया है किन्तु समय चौमासेका नहीं होना चाहिये ।
टीकाकारने महाहिंसा के आक्षेपसे बचने के अभिप्रायस शरीरके बाहरी उपयोग के लिये मांस सेवन बतलाया सो कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि मांस कोई तल नहीं जिसकी चमडेपर मालिश हो और न वह मलहमका ही काम देता है |
आचारांगसूत्र (वि. सं. १९६२ में मोरवी काठियावाड से मूल सहित गुजराती भाषान्तर के साथ भाषाकार प्रोफेसर वजीभाई देवराजद्वारा प्रकाशित ) १० वें अध्यायके चौथे उद्देशके १६५ वें सूत्रम १७५ पृष्ठपर यों लिखा है
" संति तथेगतियस्स भिवखुस्स पुत्र संख्या वा पच्छाया मा परिवसति, तंजा, गाहावती वा गाहावतीणो वा, गाडावतिपुत्रा वा. गाहावतिधूयाओ वा, गाह्रावतिसुण्डाओ वा, भाईओ वा, दासी वा दासीओ वा, कम्मकरावा, कम्मकरीओ वा, तहप्पगाराई कुलाई पुरेसंध्याणि वा पच्छसंश्रयाणि वा पुन्त्रामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि, अविय इत्थ लभिस्सामि, पिंडं वा, लोय चा, खीरं चा, दि वा, नवणीयं वा, घयं वा, गुलं वा, तेल्लं वा, महुं वा, मज्जं वा, मांस वा, संकुलिं वा, फाणियं वा, पूयं वा, सिहरिणि वा तं पुन्वामेव भच्चा पंच्चा, पडिगाढं संलिहिय सपमज्जिय, तत्तो पच्छा भिक्खुहिं सद्धिं गाहावतिकुलं पिंडवाय पडियाए पडिसिस्सामि निक्खभिस्सामि वा । माइट्ठाणं फासे | णो एवं करेज्जा | से तत्थ भिक्खुर्हि सद्धि कालेण, अणुविसित्ता तत्थियरेहिं कुलेहिं सामुदाणियं एसिय वेसियं पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा "
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इसकी गुजराती टीका यों लिखी है।
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“ कोइ गाममां मुनिना पूर्वपरिचित तथा पश्चात्परिचित सगाववाला
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