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९-जब कि साधुने समस्त परिग्रहका त्याग करदिया है फिर वह चमडे सरीखी गंदी चीज अपने पास कैसे रख सकता है । ___इत्यादि अनेक दोष आते हैं। खेद है कि श्वेताम्बरीय ग्रंथकारोंने ऐसा खोटा विधान करके साधुके पवित्र ऊंचे पदको तथा पवित्र जैन धर्मको बदनाम किया है।
साधु आहारपान कितने वार करे ? अब हम इस प्रश्नपर प्रकाश डालते हैं कि महाव्रतधारी साधु दिनमें कितनी बार भोजन करे।
दिगम्बर सम्प्रदायके चरणानुयोगी ग्रंथ दिनमें मुनियोंका एक बार थाहार पान करनेका आदेश देते हैं क्योंकि मुनियोंके २८ मूल गुणों में 'दिनमें एक बार शुद्ध आहार लेना' यह भी एक मूलगुण है । तदनुसार दिगम्बर जैन मुनि ही नहीं किंतु ११ वी प्रतिमाधारी उत्कृष्ट श्रावक भी दिनमें एक ही बार आहार किया करते हैं । श्वेतांबरीय ग्रंथों में से प्रवचनसारोद्धार के २९९ वें पृष्ठपर यों लिखा है
कुक्कुडिअंडयमेत्ता कवला बत्तीस भोयण प्रमाणे ।
राएणा सायंतो संगारं करइ स चरित्तं ॥ ७४२ ॥
अर्थात्-कुकडी पक्षी (मुर्गी ) के अंडेके बराबर प्रमाणवाले ३२ बत्तीस ग्रास (कौर ) मुनिके भोजनका प्रमाण है । साधु यदि इससे अधिक भोजन ले तो दोष और यदि इससे कम भोजन करे तो गुण होता है।
प्रवचनसारोद्धारके इस कथनसे भी दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार ही विधान सिद्ध होता है क्योंकि अधिकसे अधिक ३२ ग्रास आहार ही दिगम्बरीय शास्त्रोंमें बतलाया है । यह कथन इस प्रकार ठीक दीखता हुआ भी इसके विरुद्ध कथन श्वेताम्बर व स्थानकवासी सम्प्रदायके अति माननीय ग्रंथ कल्पसूत्रके ( वि. सं. १९६२ में श्रावक भीमसिंह माणेक मुंबई द्वारा प्रकाशित गुजराती टीकावाला ) ९ वें व्याख्यानमें ११२ - पृष्ठपर, लिखा है कि
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