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" गुरू उत्तर कहे छे के अपवादे तो ग्रहणे पण संयम थाय ।
यदुक्तं
दुप्पडिलिहियदूसं अद्धाणाइ विवित्तगिण्डंति । विप्पा पोच्छइ पणगं कालियनिज्जुत्ति कासहा । १। अर्थ--मागादिके घिविक्तसागारि जेम गृहस्थ न देखे अने पुस्तक पांच ते कालिकनियुक्तिनी रक्षाने अर्थे छ ।”
अर्थात्--पिंडविशुद्धिग्रंथकी वृत्तिमें संयमका व्याख्यान करते हुए अजीवसंयम अप्रत्युत्पेक्ष, दुःप्रत्युत्पेक्ष्य, दृष्य, तृण, चर्मकी ऐसी पांच प्रकार की पुस्तक तथा सोना आदिको अग्रहण रूप कहा है । ___इसपर शिष्य पूछता है कि उपयुक्त पांच तरहकी पुस्तकोंके ग्रहण करनेसे संयम होता है ? अथवा ग्रहण न करनेसे संयम होता है ? ___ गुरु उत्तर देते हैं कि अपवाद मार्गमें ( किसी विशेष दशामें ) तो चर्मादि पांच तरहकी पुस्तक ग्रहण करनेसे भी संयम होता है। जैसा कि अन्यत्र भी कहा है
" मार्ग आदि ऐसे स्थानपर जहां कि कोई गृहस्थ मनुष्य न देखता हो तो कालिक नियुक्तिकी रक्षाके लिये वे पांच प्रकारकी पुस्तकें बतलाई हैं।"
सारांश यह है कि यदि कोई गृहस्थ न देखने पावे तो साधु किसी विशेष समय चमडेकी भी पुस्तक अपने पास रख लेवे।। ___कैसा हास्यकारक विधान है। महाव्रतधारी साधु चमडेकी और कोई भी वस्तु नहीं किन्तु पुस्तक जिसमें कि जिनवाणी अंकित होगी अपने पास रक्खे और वह भी गृहस्थ की आंखोंसे बचाकर रक्खे । यद्यपि अपवाद दशामें किन्हीं साधारण नियमोंकी कुछ सीमा तोडी जाती है किन्तु ऐसा कार्य नहीं किया जाता जिससे व्रतनाश हो । चमडेकी पुस्तक रखना अहिंसा महाव्रतका नाश करना है तथा साधुपदको मलिन करना है। मृगछाला आदि चमडा रखनेके कारण अन्य अजैन साधुओंकी निन्दा श्वेतांबरीय आचार्य ( ग्रंथकार ) किस तरह कर सकते हैं ? क्योंकि चमडेका उपयोग उनके यहां भी विद्यमान है ।
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