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५-विछौने चादरकी चोर आदि से रक्षा करने के लिये साधुको सदा सावधान रहना होगा । जैसे गृहस्थको अपने परिग्रहके रक्षाके लिये सावधान रहना पडता है।
६-चोर, डाकू, भील मादि उस विछौने, चादरको चुरा, लूट या छीन ले जाय तो साधुके चित्तमें क्षोभ, व्याकुलता, दुख होगा ।
७-उस विछौनेकी रक्षाके निमित्तसे साधु एकांत स्थान पर्वत, वन, श्मशान आदिमें ध्यान आदि नहीं कर सकेगा।
८-विछौना चादर मुनिचारित्रका घात करने वाली है इसी कारण श्वेतांबरी भी उत्कृष्ट जिनकल्पी साधु तथा दीक्षित तीर्थकर इनको नहीं ग्रहण करते हैं।
९-विछौना चादरको उठाने, रखने, विछाने, सुखाने, झाडने पोंछने, फटकारने, आदिमें असंयम होता है।
१०-रातको सोते समय अंधेरेमें विछौने पर ठहरे हुए छोटे जी. वोंका शोधन भी नहीं हो सकता।
११-बिछौना चादर यदि फट जाय तो साधुको उसे सीने सिलानेकी चिन्ता लगती है । यदि मैला हो जाय या उससे किसी तरह खुन, पीव, विष्टा, मूत्र भादि लग जाय तो साधुको उसे धोनेकी चिंता होगी। धोने धुलानेपर आरंभका पाप लगेगा।
१२-बिछौना चादर गर्मीके दिनोंमें ठंडा और शीत ऋतुमें ( शर्दीके दिनोंमें ) गर्म मिले तो साधुको अच्छा लगे, सुख शान्ति मिले । यदि वैसा न मिले तो साधुके मनमें अशान्ति दुख होगा इत्यादि।
इस कारण महाव्रतधारी साधुको बिछौना चादर आदि भी वस्त्र पात्र तथा लाठी आदिके समान अपने पास न रखना चाहिये क्योंकि इन वस्तुओंके रखने से साधुका रूप परदेशमें यात्रा करनेवाले गृहस्थके समान हो जाता है । क्योंकि गृहस्थ भी विदेश यात्राके समय खाने पीनेके वर्तन, पहनने ओढनेके कपडे, बिछानेका बिछौना, तथा लाठी भादि ही रखता है।
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