________________
( १२४ )
सकते हैं जिनके पास कि जरासा भी वस्त्र नहीं है । और जिनको स्थान स्थान पर जैन, अजैन स्त्री पुरुषोंके झुंड नमस्कार दर्शन पूजन करते हैं । इन पूज्य मुनीश्वरोंके निर्विकार, अखंड ब्रह्मचर्यमंडित नंगे शरीरको देखकर किसी स्त्री या पुरुषके हृदयमें लज्जा या कामवासना उत्पन्न ही नहीं होती ।
श्वेताम्बर आचार्य आत्मारामजी के समयमे भी दक्षिण कर्णाटक देशम श्री १०८ अनन्तकीर्तिजीं दिगम्बर मुनि विद्यमान थे । वे उनका दर्शन करके अपना भ्रम दूर कर सकते थे ।
सारांश - पूर्वोक्त बार्तो पर दृष्टि डालते हुए निष्पक्ष विद्वान स्वीकार करेंगे कि साधुका परिग्रहरहित, निग्रंथ रूप दिगम्बर (नग्न-वस्त्र-रहित ) ही है । और उसी नग्न दिगम्बर वेशसे साधुके पवित्र मन तथा अखंड ब्रह्मचर्य परीक्षा हो सकती है । जिसको कि श्वेताम्बरीय ग्रंथ आचारांगसूत्र, प्रवचनसारोद्धार आदि भी स्वीकार करते हैं ।
क्या साधु अपने पास लाठी रक्खे ?
अब हम लाठी प्रकरणपर उतरते हैं । कारणके अनुसार कार्य होता है; यह सब कोई समझता है। गृहस्थाश्रम में पुत्र, स्त्री, धन, मकान, दुकान आदि कारणों से पुरुषको मोह उत्पन्न होता है । इस कारण संसार से विरागी पुरुष इन मोहके कारणोंको छोडकर मुनिदीक्षा लेकर एकांतस्थान, वन, पर्वत, गुफा, मठ आदि में रहता है क्योंकि वहां पर उसके मन में मोह पैदा करनेवाले बाहरी पदार्थ नहीं हैं ।
घरवार परिग्रहको छोड़कर अहिंसा महाव्रतके पालनेवाले मुनिराज अपने पास लाठी रक्खें या न रक्खें ? इस प्रश्नपर विचार करनेके पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि दिगम्बर, श्वेतांबर तथा स्थानकवासी ऐसे तीन तरह के जैन साधुओं में से केवल श्वेतांबर जैन साधु ही अपने पास लाठी ( डंडा ) रखते हैं । जैसा कि श्वेतांबरीय ग्रंथ प्रवचनसारोद्धार के २६२ पृष्ठ ६७७ वीं गाथामें लिखा है
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com