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इस आक्षेपका उत्तर आचर्य आत्मारामजी या अन्य कोई श्वेताम्वरीय तथा स्थानकवासी आचार्य अपने मान्य आचार ग्रंथों [ आचारंगसूत्र, कल्पसूत्र प्रवचनसारोद्वार आदि ) से ले सकते हैं । उनके ग्रंथों में खुले शब्दों में सबसे बडा साधु वस्त्ररहित यानी नम्र जिनकल्पी साधु बतलाया है। क्या स्त्री उनका दर्शन नहीं करता हैं ? क्या उनके दर्शन से भी स्त्रियोंका मन कामविकार में फस जाता है ।
दूसरे - श्वेताम्बरीय तथा स्थानकवासी ग्रंथों में लिखा है कि श्रीमहावीर तीर्थकर १३ मास छे तथा भगवान ऋषभदेव भी कुछ समय पीछे देवदृष्य वस्त्र छोडकर अन तक वस्त्रर हत नम रहे थे। तो क्या उस म दशामें किसी स्त्री साध्वी आदिने उनका दर्शन नहीं किया होगा ? और दर्शन करने पर क्या उनके भी कामविकार हो गया होगा ? चंदना बालाने नग्न भगवान महावीर को आहार किस प्रकार कराया होगा ?
इन प्रश्नोंका समाधान ही उनके आक्षेपका समाधान है। क्योंकि उत्कृष्ट जिनकल्पी साधुका ही दूसरा नाम दिगम्बर मुनि है ।
तथा - जिन पुरुष के मनमें क मविकार होता है उसीका नम्र शरीर देखकर स्त्र के मनमें विकार भाव उत्पन्न हो सकता है । परन्तु जिस महत्मा के हृदयपर अखंड - अटल ब्रह्मचर्य जमा हुआ है उसके नम शरीरको देखकर विकार के बदले दर्शन करने वालेके हृदय में वीतराग भाव उत्पन्न होता है । जैसे कि भगवान महावीर स्वामी के नम शरीरको देखकर चंदना वाला हृदयमें वीतरागभाव जागृत हुआ था ।
यह बात हम इन लौकिक दृष्टान्तोंसे समझ सकते हैं कि माता या अन्य स्त्रियां ५-१० वर्षके नग्न ( नंगे ) बालकको देखकर लज्जित नहीं होती हैं और न उसके नंगे शरीरको देखकर उनके म में कम वकार पैदा होता है क्योंकि वह बालक निर्विकार हैसेवनको बिलकुल जानता नहीं है ।
:-काम
तथा एक ही पुरुषको उसको माता, बहिन तथा पुत्री आलिंगन करती है किंतु उस पुरुषका शरीर भुजाओंसे भर लेनेपर भी ( आलिंगन कर लेने पर भी > उनके मनमें कामविकार उत्पन्न न होकर स्नेह,,
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