________________
• ( ११० )
" अचेलगोय जे धम्मो " सं० टी० अचेलकश्वाविद्यमानचेलकः ।
यानी - जो वस्त्र रहित दशा है वही उत्कृष्ट जिनकल्पी मुनि का धर्म है ।
श्वेताम्बर समाजके परममाननीय आचार्य आत्मारामजीने अपने तत्व निर्णय प्रासाद के ३३ वें स्थंभ में ५४३ वें पृष्ठमें यों लिखा है कि
" जिनकल्पी साधु दो प्रकार के होते हैं एक पाणिपात्र, ओढने के वस्त्र रहित होता है । दूसरा पात्रधारी और वस्त्रकर सहित होता है । " इन दोनों श्वेताम्बरीय ग्रंथों में ऊपर लिखे वाक्यों से भी यह बात अच्छी तरह सिद्ध होती है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय भी सबसे उत्कृष्ट साधु वस्त्र और पात्रोंके त्यागी दिगम्बर मुनिको ही मानते हैं ।
दिगम्बर सम्प्रदाय के आगम ग्रंथ तो स्थविरकल्पी ( शिष्यों के साथ रहनेवाले ग्रंथ रचना उपदेश देना आदि कार्यों में प्रेम रखने वाले मुनि) तथा जिनकल्पी ( अकेले विहार करनेवाले ) दोनों प्रकार के मुनियोंको वस्त्र पहननेका सर्वथा निषेध करते हैं। उन्होंने तो मुनियों के २८ मूलगुणों में ' वस्त्रत्याग' नामक एक मूलगुण बतलाया है । जिसके विना आचरण किये मुनिदीक्षा धारण नहीं हो सकती ।
श्वेताम्बर तथा स्थानकवासी सम्प्रदाय में भी दिगम्बर सम्प्रदाय के समान यद्यपि स्थविरकल्पी मुनिसे जिनकरूपी मुनि ऊंचे दर्जेका बतलाया है किन्तु उनके आगम ग्रंथोंने केवल सबसे ऊची श्रेणीके जिनकल्पी मुनि ही कपडे रहित यानी नग्नदिगम्बर बतलाये हैं। उनसे नीचे दर्जे के साधुओंको वस्त्रका पहनना बतलाया है । इस तोरसे श्वेतांबर और स्थानकवासी संप्रदाय के पूर्वोक्त आगम ग्रंथ भी वस्त्र रहित दिगम्बर मुनिकी उत्तमताका हृदय से समर्थन करते हैं ।
क्या वस्त्रधारक निर्बंध हो सकता है ? वस्त्ररहित दिगम्बर साधु वास्तव में निर्ग्रथ ( परिग्रहत्यागी ) हो सकते हैं या वस्त्रधारी साधु भी निर्ग्रथ हो सकते हैं ? अब इस बातका यहां पर निर्णय करते हैं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com