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या समय अनुसार पहने या फाड कर छोटा कर लेवे। यहां तक कि एक ही कपडा रखले और विचार रक्खे कि मैं अंतमें उस एक कपडेको भी छोड यानी नग्न होकर निश्चिन्त बनूं। ऐसा करनेसे तप प्राप्त होता हैं । इस कारण जैसा भगवानने कहा है वैसा जैसे बने तैसे पूर्ण तौर से समझना चाहिये ।
यानी - मुनिके पास जब तक कोई एक भी कपडा रहेगा तब तक उसकी वस्त्र संबंधी चिन्ता नहीं मिट सकती है । इस कारण तपस्या प्राप्त करने के लिये तथा चिन्ता मिटानेके लिये अपने कपडे घटाते घटाते अंतमें सब बस्त्र छोडकर नग्न ( दिगम्बर ) बनने का विचार रखना चाहिये । इस तरह आचारांग सूत्र के इस लेखसे भी सिद्ध होता है कि जैन साधुका असली वेश नग्न ( दिगम्बर ) है 1
इसी आचारांग सूत्रके ८ वें अध्यापके सातवें उद्देश में ऐसा लिखा हैं कि.
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" अदुवा] तत्थ परकमंतं भुज्जो अचलं तणकासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, दंसमसगफासा फुसंति, एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेति अचेले लाघवियं भगमपमाणे । तवे से अभिसमन्नागए भवति । जतं भगवया पवेदियं तमेव अभिसमेच्चा सव्वभो सव्वताए समतमेव समभिजाणिया । " ( ४३४ )
गु० टी० - जो लज्जा जीती शकाती होय तो अचेल (वस्त्ररहित ) ज रहेवुं तेम रहेतां तृणस्पर्श ताढ ताप दंशमशक, तथा बीजापण अनेक अनुकूल प्रतिकूल परीषह आवे ते सहन करवा. एम कर्याथी लाघव ( अल्पचिता ) प्राप्त थाय छे अने तप पण प्राप्त थाय छे । माटे जेम भगवाने कह्युं छे तेनेज जाणी जेम बने तेम समयणुं जाणता रहे ।
यानी - जो मुनि लज्जा जीत सकता हो वह मुनि नग्न (दिगंबर) ही रहे । नग्न रहकर तृणस्पर्श शर्दी, गर्मी, दंशमशक तथा और और जो परीषह भावें उनको सहन करे । ऐसा करनेंसे मुनिको थोडी चिन्ता ( थोडी. आकुलता ) रहती है और तप प्राप्त होता है । इस कारण जैसा भगarra कहा है वैसा जानकर जैसे बने वैसे पूर्ण समझता रहे ।
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