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है । इनके 26 पंडित विद्वान्
5. पू. हरजी ऋषि का सम्प्रदाय, कोटा सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध रत्न और 1 साध्वी शिष्य थे, जिनमें से पं. हुक्मीचन्द जी ( स्व. वी सं. 2388 -- वि. सं. 1918 - ई. स. 1861 ) एक उच्च प्राचारनिष्ठ विद्वान् साधु हो गये हैं । वे महान तपस्वी थे और बेले-बेले पारणा करते थे अर्थात् दो रोज उपवास कर पारणा यानि तीसरे दिन आहार लेते थे और यह क्रम उनका चलता रहता था । प्रतिदिन 2000 नमुत्थु ( शक्र - स्तव) से प्रभु स्तुति करते थे ।
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6. श्री जवाहरलाल जी महाराज भी इसी सम्प्रदाय के थे उनका जन्म वी. सं. 2402 (वि. सं. 1932 ई. स. 1875 ) में हुआ और 16 वर्ष में दीक्षित हुए। वे बालब्रह्मचारी और शास्त्रों के गहन ज्ञाता थे । तुलनात्मक दृष्टि से समभाव पूर्वक शास्त्रों की तर्क पूर्ण व्याख्या करते थे । उनकी साहित्य सेवा भी अनुपम थी। 'सूत्र कृतांग' की विस्तृत हिन्दी टीका लिखी थी और अन्य मतों की निष्पक्ष आलोचना की थी । लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, वल्लभभाई पटेल, पं. मदनमोहन मालवीय आपके सम्पर्क में आये हैं । उनके प्रवचन नेताओं के लिये ही नहीं, किन्तु ग्रामवासियों के 'लिये भी आकर्षक होते थे । 'भ्रम विध्वंसन' के उत्तर में 'सर्द्ध'म मण्डन' ढाल साहित्य रच कर अनुकम्पा (दया) दान के सिद्धान्तों का ग्रामीण लोगों में रस बरसाते थे । आपने पू. श्री गणेशीलालजी महाराज को सादड़ी स्थानकवासी सम्मेलन में उपाचार्य पद प्रदान किया । 23 वर्ष प्राचार्य पद पर रह कर वी. सं. 2470 (वि. सं. 2000 - ई. स. 1943 ) में दिवंगत हुए । y 7. प्रसिद्ध वक्ता पं. मुनि श्री चोथमलजी (जन्म वी. सं. 2404वि सं 1934 – ई. स. 1877 ) पूज्य हीरालालजी महाराज के शिष्य थे । ये महान् वक्ता तरीके प्रख्यात हुए । उनकी व्याख्यान शैली से बड़े-बड़े लोग प्रभावित हुए और राजा महाराजाओं ने मद्य, माँस और शिकार का त्याग किया। जन साधारण पर इतना असर होता था कि कई एक ने बीड़ी, सिगरेट, जुम्रा, मद्य, माँस, चोरी आदि दुर्व्यसनों को त्याग दिया । अनेक सरकारों से जीव दया के पट्टे परवाने भी प्राप्त किये । शास्त्रों का दोहन करके, 'निर्गन्थ प्रवचन' ग्रन्थ सम्पादन किया जिसका कई भाषाओं में www.umaragyanbhandar.com
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