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एक जैन स्नातक-को भेज कर विश्व में जैन धर्म की प्रसिद्धि की । वे विचक्षण बुद्धि के धनी और अपूर्व अभ्यास शक्तिधारी थे। संप्रदाय, मत-मतांतर से जुदा पड़ कर पंजाब में सद् धर्म की प्ररूपणा की। 'जैन तत्वा दर्श,' 'प्रज्ञानतिमिर-भास्कर' 'चिकागो प्रश्नोत्तर' प्रादि सुन्दर ग्रन्थों की रचना की। पाश्चात्य विद्वानों पर इनकी प्रतिभा की अजीब छाप पड़ी थी। वी. सं. 2423 (वि. सं. 1953-ई. स. 1893) में उनका स्वर्गवास हया। पंजाब केशरी श्री विजय वल्लभ सूरिजी को वी. सं. 2414 (वि. सं. 1944-ई. | स. 1887) में 22 साधुओं सहित दीक्षा दी थी। .
__श्री विजयदान सूरिजी (दीक्षा वी. सं. 2416-वि. सं. 1946-ई. स. 1881. और स्वर्गवास वी. सं. 2462-बि. सं. 1992-ई. स. 1935) माधुनिक श्रमण इतिहास में अग्रगण्य माने जाते हैं। व्याकरण, काव्य, ज्योतिष, न्याय के निपुण विद्वान थे और श्री वल्लभसूरिजी शिक्षा और कला के प्रेमी तथा समाज-सुधारक प्राचार्य हुए जिन्होंने बम्बई में महावीर जैन विद्यालय स्थापित किया। उनका स्वप्न जैन-विश्वविद्यालय स्थापित करने का था, जो साकार नहीं हो सका। फिर भी उन्होंने पंजाब में विस्तृत धर्म प्रचार किया और कई शिक्षण संस्थाएं उनके उपदेश से स्थापित हुई।
प्राचार्य विजय नीति सूरिजी एक संगठन प्रेमी प्राचार्य हो गये हैं । उन्होंने चित्तौड़गढ़ के तीर्थ 'सतवीस देवरा' का उद्धार कराया। इसके अतिरिक्त श्री विजय लब्धि सूरिजी, श्री विजय यतीन सूरिजी, श्री लक्ष्मण सरिजी, श्री विजय प्रेम सूरिजी, श्री विजय लावण्य सूरिजी, त्रिपुटी महाराज-जी दर्शन ज्ञान न्याय-विजयजी-आदि विशिष्ट श्रमण हो चुके हैं जिन्होंने जैन साहित्य क्षेत्र में अनेक प्रावश्यक सेवाएं प्रदान कर जैन शासन की प्रभावना की है। शास्त्र विशारद प्रा. विजयधर्म सरिजी के विद्वान् शिष्य रत्न-मनि न्याय विजयजी, मुनि विद्या विजयजी, मनि जयन्तविजयजी ने भी कई पुस्तकें लिख कर जैन साहित्य की सेवा की है । पुरातत्त्व. विद् श्री पुण्य विजयजी, मुनि श्री जिनविजयजी, श्री कल्याणविजयजी को भी भूला नहीं जा सकता जिन्होंने प्राचीन जैन शास्त्रों का गहन अध्ययन कर अपनी टीकाएं लिखी हैं। भारत प्रसिद्ध जैसलमेर जैन ज्ञान भण्डार के ताड
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