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दीपक' भी कहते हैं, सेठ धरणशाह पोरवाल ने निर्माण कराया था और
भी प्राचार्य श्री सोमसुन्दर सूरि के समय में पोसीना तीर्थ वी. सं 1947 (वि. सं. 1477 ई. स. 1420 ) और मगसी तीर्थ वी सं. 1967 (वि. स ं. 1497-ई स. 1440 ) में स्थापित हुए। वी. सं 1948 (वि. सं. 1478 ई. स. 1421 ) में राणा मोकल के राज्य में प्रसिद्ध जावर नगरी ( उदयपुर - मेवाड़) में संघ पति धनपाल पोरवाल द्वारा निर्मित भगवान् शान्तिनाथ के जिन प्रासाद की प्रतिष्ठा भी प्राचार्य सोम सुन्दर ने की थी । उनके उपदेश से वी. सं. 1972 (वि. सं. 1502 - ई. सं. 1445 ) में पर्वत श्रीमाली ने बड़ा ग्रन्थ भण्डार स्थापित किया था ।
श्री. सोमसुन्दर सूरि के पट्टधर शिष्य प्रा. मुनिसुन्दर सूरि महान विद्वान आचार्य हुए हैं । उनको 'वादि - गोकुल-सांड', 'काली - सरस्वती' कहते थे । उनके उपदेश से सिरोही के राव सहस्रमल ने प्रमारि पलाई थी और मेवाड़ के देलवाड़ा में विघ्नों के निवारणार्थ 'सन्तिकरं स्तोत्र' की रचना की । श्वेताम्बर जैन श्राज भी उसका पठन करते हैं । उनके गुरु प्रा. सोमसुन्दर सूरि तीन बार देलवाड़ा पधारे और वहां के विशाल कलात्मक कई जैन मन्दिरों की मूत्तियों की प्रतिष्ठा उन्होंने और उनके शिष्यों एवं खरतर गच्छ के प्रा. श्री जिन वर्धन सूरि, श्री जिन सागर सूरि, श्री जिन चन्द्र सूरि तथा श्री सर्वारणंद सूरि ने अनेक बार की । वी. सं 1967 (वि. सं 1497ई सं 1440 ) में पं जिन हर्षगरि ने 'वस्तुपाल चरित्र' नामक ऐतिहासिक महाकाव्य चित्तौड़ में सम्पूर्ण किया 12 वीर सं. 1966 (वि. सं. 1496ई. सं. 1439 ) में आ. जय शेखर सूरि ने 'न्याय - मंजरी' 'जैन कुमार सम्भव', 'उपदेश माला' आदि ग्रन्थ लिखे हैं और वृहद्गच्छ के श्राचार्य रत्न शेखर सूरि ने 'सम्बोध सत्तरी', 'श्राद्धविवाधि' 'गुरण स्थानक कमारोल' आदि ग्रन्थ लिखे हैं । उनका स्वर्ग गमन वी. सं. 1987 (वि. सं. 1517 – ई. सं. 1460) में हुआ ।
1 वही पृ. 444-522 2 वही पृ. 455
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