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भारत में राजस्थान के उदयपुर नगर में, भावी तीर्थङ्कर श्री पद्मनाभ स्वामी का मन्दिर निर्माण हो चुका है जो आज तीर्थ रूप में माना जाता है। प्रथम तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव :
___ शास्त्रीय परम्परा के अनुसार इस अवसर्पिणी के प्रथम पारा (कालचक्र का एक भाग) में मनुष्यों की आयु पल्योपम की होती थी और उनका शरीर तीन गउ (एक गउ करीब एक मील के बराबर) ऊँचा होता था और वे चौथे दिन भोजन करते थे और भोजन भी कल्प वृक्ष (चित्ररस नामक) से याचना करने पर मिल जाता था। ज्यों-ज्यों अवसर्पिणी काल बीतता गया, कल्प वृक्ष का प्रभाव भी मंद होता गया। उस समय विमल वाहन और उनकी स्त्री प्रियंगु, जम्बु द्वीप भरत क्षेत्र के दक्षिण खण्ड में, इस अवसर्पिणी के तीसरे पारा में पल्योपम का पाठवाँ भाग शेष रहता था, तब उत्पन्न हुए जो प्रथम 'कुल-कर' कहे जाते हैं। इन कुल-करों की पीढ़ी में, 14 वें कुल कर नाभि राजा और मरुदेवा माता हुए जो भगवान ऋषभदेव के माता पिता थे। उस समय युगालिया धर्म, प्रवर्तमान था अर्थात् युगल स्त्री और पुरुष एक साथ जन्म लेते थे। ऋषभदेव के समय में, कल्प वृक्ष के फल नहीं देने से, युगलियों में परस्पर कलह हो जाने के कारण, ऋषभदेव को प्रथम राजा स्थापित किया जिन्होंने युगलियों को गृहस्थ धर्म की शिक्षा दी। उनकी ग्रायुष्य चौरासी लाख पूर्व की मानी जाती है।2।।
भगवान ऋषभदेव का जन्म चैत्र कृष्ण। 8 को हुआ । जब उनकी आयु एक वर्ष से कम थी तो प्रथम जिनेश्वर के वंश की स्थापना करने के लिए इन्द्र ने एक बड़ा ईक्षू (ईख यानी गन्ना) उनके हाथ में दिया जिससे इक्ष्वाकु 1. 'जैन दर्शन में काल नु स्वरूप' (गुजराती) सम्पादक श्री विजय
सूशीलसूरिजी की पुस्तक का हिन्दी भाषान्तर अनुवादकर्ताजोधसिंह मेहता, पृ. 7 से 81 2. 8400000 x 8400000 वर्षों से गुणा करते हुए जो संख्या पावे
उसका नाम एक पूर्व होता है 'जैन दर्शन में काल का स्वरूप' । पृ. 6
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