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पास इन्हींके बैठ मजेसे भोजनको करवाती हैं । ललनाओंका ढेर हमेशा, दिनभर पास जमाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ॥
९१ एक दिवसके अन्तरसे, उस घरमें भिक्षा जाते हैं, हलवा - पूरी और रायता, सब कुछ ही ले आते हैं । आधाकर्मी दोष न देखें, सबको इसने खाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ॥
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कच्चा पानी पिएं राखका, जो सूत्रोंमें नहीं कहा, बरतणके धोअणको लेलें, जिसमें हैं उच्छिष्ट भरा । ऐसे करनेसे अपने पर ' म्लेच्छ ' कलंक लगाया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ॥ ९३
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अजब बात रखते ही नहि हैं, रात्रिसमयमें पानीको, करते क्या होंगे यह सोचो, जब जावें वे जंगलको ? । अशुची रखनेका तो देखो, दंड निशिथमें आया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ॥
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'रजस्वला' यह धर्म न मानें, मानें फोड़ा फूटा है,
उससे भी भिक्षा मंगावें, सब कुछ इसको छूटा है । करूं कहाँ तक श्लाघा इसकी ? धर्म-कर्म सब खोया है, देखो ऐसे अजब मजबने, अपना जन्म गमाया है ।। १ रजस्वलावाली स्त्रीसे ।
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