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( ४३ ) “ अव्रतिजीवन नहीं चाहना ' यह सूत्रोंमें आया है,
नहीं समझ कर अर्थ इसीका, इसको यों पलटाया है" अत्रति जीवोंका जीना नहि चाहो, यह बतलाया ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ॥ ( ४४ )
ऐसा झूठा अर्थ समझकर, दया हृदयसे खो डाली, दान-पुण्य शुभकरणी अपने ही हाथोंसे धो डाली । समकितको खो बैठ हृदयसे, जो मिथ्यात्व बसाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ||
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पार्श्वनाथ सांप बचाया, शान्तिनाथने कबुतरको, नेमनाथने पशु बचवाये, देखो उन अधिकारोंको । नहीं व्रतीथे, फिर भी उनका, क्यों रक्षण करवाया है ? ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ||
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४६ शास्त्रों में तो यही बताया, श्रावक यह कहलाता है:44 सात क्षेत्र में भक्ति - प्रेमसे धनका व्यय जो करता है । दीन दुखीमें धनका व्यय भी जिसने नित्य कराया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है ।।
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फिर भी इसको नहीं मानकर, दान-पुण्य भगवाया है,
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