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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
के ऊपर कपडा बांधने की आशा है। किन्तु जब साध्वियाँ व्याख्यान बांचती है तब तो उपयोग पूर्वक अपना शरीर वस्त्र से ढके रहती हैं, और सुननेवाले भी अनेक मनुष्य होते हैं। इसलिए खुले दरवाजे पर कपडा बांधने की बात बतलाकर व्याख्यान बांचने का निषेध करना सर्वथा अनुचित है। अपने ठहरने के स्थानों में तो चाहे जैसे फटे पुराने मैले तथा छोटे वस्त्र पहनकर भी साध्वियाँ बैठ सकती हैं । किन्तु आहार-पानी, विहार, व्याख्यान, मन्दिर और स्थंडिल आदि के लिए पूरा वस्त्र ओढकर शरीर को सर्वाङ्ग ढककर ही बाहर जाना पड़ता है इससे किसी प्रकार की बेअदबी नहीं हो सकती । इसलिए उपयोग पूर्वक व्याख्यान वांचने में किसी भी प्रकार का दोष नहीं आ सकता है।
६२-अगर कहा जाय कि-किसी कारणवश साधु या श्रावक को साध्वियों के उपाश्रय में जाने का कार्य हो तो बाहर दरवाजे से ही खुंखार आदि आवाज देकर के उपाश्रय में जाना कल्पता है । जब साध्धियों के उपाश्रय में जाने के लिए पुरुषों की ऐसी मर्यादा है तो फिर साध्वियों के उपाश्रय में जाकर श्रावक कैसे व्याख्यान सुन सकते हैं,? यह कथन भी उचित नहीं, साध्वियों के उपाश्रय में पुरुषों को खुंखार आवाज करने की इसलिए मर्यादा है कि साध्वियाँ अपने कार्य में खुले अंग आदि हों तो खुंखार या आवाज सुनकर वस्त्र ओढ लें, अपना अंग खुला हुआ ढकले, अपनी मर्यादा पूर्वक सावधान होकर बैठें जिससे किसी प्रकार की अमर्यादा या लजा भंग न होने पावें, परन्तु व्याख्यान सुनने के लिये तो नियत समय पर श्रावक श्राविका अनेक जन साथ में आते हैं, जिससे साध्वियाँ पहिले से ही सावधान रहती हैं इसलिए श्रावकों को व्याख्यान सुनने के लिए साध्वियों के उपाश्रय में आने में कोई हानि नहीं है।
६३-यदि कहा जाय कि साध्वियाँ कल्पसूत्र का योग वहन नहीं करती इसलिए पर्युषणा के व्याख्यान में साध्वियों को कल्पसूत्र का व्याख्यान नहीं बांचना चाहिये। ऐसा कह कर साध्वियों को पर्युषणा में कल्पसूत्र बांचने का निषेध करनेवालों के ही गच्छ में, समुदाय में, आचार्य, उपाध्याय आदि सैंकड़ों साधु योग किये बिनाही कल्पसूत्र बांचते हैं, उन्हों को तो मनाई करते नहीं तथा खुद आप भी योग किये बिना ही प्रत्येक वर्ष में कल्पसूत्र बांचते हैं । और साध्वियों के लिये योग बहन करने का बहाना लेकर बांचने का निषेध करना यह कितना बड़ा भारी अन्याय है, जो महाशय अपने निजका और आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक आदि मुनियों को पर्युषण पर्व में कल्पसूत्र बांचने का निषेधकर सकते नहीं और कई जगह पर पंचाश्रव सेवन करनेवाले यति श्री पूज्यों को भी कल्पसूत्र बांचने का निषेधकर सकते नहीं, तथा अपने गच्छ के श्रावक श्राविकाओं को यति श्री पूज्यों के व्याख्यान में कल्पसूत्र सुनने का निषेध करते नहीं, और अन्तरद्वेष के मारे साध्वियों को कल्पसूत्र बांचने का उनका निषेध करते हैं यह कभी न्याय नहीं कहा जा सकता।
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