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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
५८-फिर भी देखिये-जिसके मन में जैसा भाव भरा रहता है वह हर बहाने हरेक प्रसंग पर उसकी चेष्टा करके अपने मनोगत भाव को प्रकाशित कर देता है, उसको बुद्धिमान मर्मज्ञ लोग उसकी चेष्टा से उसके मनोगत भावना को समझ लेते हैं । इसही तरह साध्वी व्याख्यान बांचेगी तो लोगों के सामने देखने पर विकार भाव पैदा होगा। ऐसा बारंबार कहनेवालों को ही विकारी भाववाले समझने चाहिये। क्योंकि जिसने अपनी आत्मा के कल्याण के लिए संसारी माया छोडकर पंच महाव्रत लिये हैं तथा दूसरों का उद्धार करने की जिसके मन में हमेशा वैराग्य भावना लगी रहती है वह साध्वी व्याख्यान समय सामान्यतया निर्विकार भाव से उपकार बुद्धि से हित शिक्षा देती हुई पुरुषों के सामने देख भी ले तो भी किसी प्रकार का विकार भाव पैदा नहीं हो सकता है, परन्तु जिसके मन में विकार भाव भरा रहता है वह सब में अपने जैसा विकार भाव देखता है, उसके कर्म की गति उनके कहने लिखने या बारम्बार बकवाद करने पर भी कुछ नहीं हो सकता है, परन्तु ऐसा करके साध्वी समाज पर मिथ्या आरोप लगाने से दुर्लभ बोधि-अनंत संसार वृद्धि के कर्म अवश्य ही बांधेगे । क्योंकि सिद्धप्राभृत, नन्दी सूत्र की टीका आदि अनेक शास्त्रों के प्रमाण हम ऊपर बता चुके हैं, उन्हों में ज्ञानी पूर्वाचार्यों ने श्रावक श्राविकाओं के सामने साध्वियों को धर्मोपदेश देने की आज्ञा दी है, इसलिए ऐसी कुयुक्तियाँ करनेवाले अज्ञानी ठहरते हैं, किसी एक व्यक्तिगत का दृष्टान्त सब के ऊपर लागू नहीं हो सकता है।
५६-अगर कहा जाय कि-किसी साध्वी को केवल ज्ञान प्राप्त हो जाय तो उसको छदमस्थ साधु वन्दना नहीं करते हैं, तो फिर साध्वी व्याख्यान कैसे बांच सकती है ? ऐसा कहकर जो महाशय साध्वियों को व्याख्यान बांचने का निषेध करते हैं उनका बड़ा ही अनुचित हठाग्रह है क्योंकि-वंदना करना अलग विषय है और व्याख्यान बांचना अलग विषय है, देखिये-जैन शास्त्रों में मुणों की पूजा है परन्तु व्यक्ति की नहीं । “मुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते, न च जाति न च वयः” इस प्रकार सब जगह गुणों की पूजा होती है। इसलिए अगर साध्वी को केवल ज्ञान और केवल दर्शन प्राप्त हो जावे तो वह सब के भाव से वन्दनीय पूजनीय अवश्य है । और उनसे अपना संदेह भी पूछ सकते हैं परन्तु सिर्फ अज्ञानी लोगों के (व्यवहार विरुद्ध) संशय का कारण न होने के लिए द्रव्य से पंचांग नमाकर वन्दना करने का व्यवहार साधु का नहीं है, परन्तु केवल ज्ञानी साध्वी या अन्य छमस्थ साध्वी देशना देती हो तो उसको विद्याधर देवता और श्रावक श्राविका आदि सुनकर लाभ उठा सकते हैं । इसमें किसी प्रकार का दोष नहीं है इसलिए साधु के द्रव्य से व्यवहारिक वन्दना करने की बात बतलाकर धर्मदेशना देने का निषेध करना सर्वथा अनुचित है। फिर भी देखिये-यहाँ पर आपको प्रत्यक्ष प्रमाण बतलाता हूं कि-जिस तरह अपन लोग “नमो लोए सव्व साहणं,, कहकर पंच महा ब्रतधारी दर्शन ज्ञान चारित्र से मुक्ति का साधन करनेवाले सब साधुओं को हमेशा
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