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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
उस गाथा की टीका में खुलासा कथन कर दिया है, कि अभी उन साध्वियों को निशीथसूत्र अर्थ सहित नहीं पढाया जाता किन्तु पहले पढाया जाता था और उस समय गुजरात आदि देशों में प्रायः चैत्यवासिनी वेशधारिणी साध्वियाँ थी और उन्हीं का अधिकतर संयम धर्म गिरा हुआ था ऐसी दशा में उस समय की उन साध्वियों को निशीथसूत्र आदि पढने की मनाई की गई तथा ग्रामानुग्राम विहार करने की और धर्मदेशना देने की मनाई की गई जो उन्हों के कर्तव्यों के अनुसार उचित ही था। इस बात का भावार्थ समझे बिना शुद्ध संयमी साध्वियों को निशीथसूत्र पढ़ने की तथा ग्रामादि में विहार करने का और धर्मदेशना देने का निषेध करना सर्वथा अनुचित है।
४५–जो महाशय "एकान्ते नैव सर्वथा तद्धर्म कथनं न नैव सुन्दरं भव्यम्" इस वाक्य से शास्त्रों की देशना धर्म कथा करने का साध्वियों को सर्वथा एकान्त रूप से निषेध करते हैं यह भी अनुचित है "सिद्ध प्राभृत" "नन्दीसूत्र की टीका" और "सिद्धपंचाशिका वचूर्णि" आदि सर्व मान्य प्राचीन शास्त्रों में मल्लीस्वामी आदि स्त्री तीर्थकरी तथा अन्य सामान्य साध्वियों को धर्मोपदेश देने का खुलासा उल्लेख है, इसके पाठ भी ऊपर बता सुके हैं । इसलिये जीवानुशासन का उपरोक्त वाक्य सर्व साध्वियों के लिए ठहराने वाले अभिनिवेशिक मिथ्यात्व से उन्मार्ग की प्ररूपणा करनेवाले बनते हैं।
४६–एक गाथा का अर्थ न बतलाने सम्बन्धी याकिनी महसरा साध्वी बाबत हरिभद्रसूरिजी का कथन बतलाकर सर्व साध्वियों को व्याख्यान बांचने का निषेध करनेवाले मिथ्या हठाग्रही ठहराते हैं, इस विषय में अधिक खुलासा ऊपर में लिख चुके हैं। .
४७- जिस समय अपने मिथ्यापक्ष को स्थापन करने के लिए और दूसरों के सत्यपक्ष को निषेध करने के लिए जिस मनुष्य को हठाग्रह हो जाता है वह अपने हठाग्रह की धुन में पुर्वापर का विचार किये बिना अटसंट लिख मारता है । वही दशा इस स्थान पर साध्वी का व्याख्यान निषेध करनेवाले शानसुन्दरजी आदि महाशयों की हुई है । देखो-यहाँ पर तो जीवानुशासन का उपरोक्त प्रमाण बतलाकर “साध्वीनां प्रतिषेधोनिराकरणं सिद्धान्तदेशनाया श्रागम कथनस्य" इस वाक्य से साध्वियों को व्याख्यान षांचने का सर्वथा निषेध करते हैं और "क्या पुरुषों की परिषद में जैन साध्वी व्याख्यान दे सकती है" इस ट्रेक्ट के पृष्ठ ५ के १३ वी पंक्ति से २० पंक्ति तक इस प्रकार लिखा है :
“यदि साध्वियों द्वारा जन कल्याणही करवाना है तो आज स्त्री समाज का क्षेत्र कम नहीं है वे साध्वियाँ महिलाओं को उपदेश देकर उनका उद्धार करें और यह कार्य कोई साधारण भी नहीं है एक महिला समाज का सुधार हो जाय तो अखिल संसार का कल्याण हो सकता है। शातासूत्र में आर्या गोपालिका तथा निरियावलिका सूत्र में साध्वी सुवता
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