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जैन धर्म में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार प्रवृत्ति करने का आदेश है, अपवाद मार्ग इसी का प्रतीक है । जिस कार्य से वर्तमान काल में अधिक लाभ हो वही करना श्रेयस्कर है । वर्तमान काल में साध्वियों के व्यारूयाम देने की बड़ी ही उपयोगिता है क्योंकि साधु लोग अल्प संख्यक है और उनका विहार भी अव्यवस्थित होने के कार बहुत से स्थानों के श्रावक धार्मिक ज्ञान से वंचित रह जाते हैं, यही कारण है कि लाखों की संख्या में श्रावक लोग अन्य मतावलम्बी होगये हैं । इस दृष्टि से भी साध्वियों के व्याख्यान की बड़ी उपादेयता है इसका फल प्रत्यक्ष है; खरतर गच्छ की विदुषी साध्वियों द्वारा जो धर्म प्रचार हुआ एवं हो रहा है यह सर्व विदित है अतः प्रत्यक्ष परिणाम देखते हुए इसकी उपयोगिता में कोई संदेह नहीं किया जा सकता ।
समर्थन ही करते हैं और
साध्वियों के व्याख्यान का निषेध करने वाले भी उनके ज्ञान संपादन करने का तो ज्ञान का विकाश ज्ञान दान के द्वारा होता है, इसके द्वारा वृद्धि प्राप्त होती है अन्यथा विस्मृत जाता है अतः साध्वियों के ज्ञान संपादन का लाभ भी जनता को मिलना चाहिए । व्याख्यान देना इसके लिए सुन्दर साधन है और इसे निषेध करना कोई भी विचारशील उचित नहीं समझेगा क्योंकि किसी भी कार्य का उचित और अनौचित्य उसके भालाभ पर निर्भर है।
प्राचीन काल में भी जैनधर्म में अनेको विदुषी साध्वियां हुई है जिनमें से ' गुण समृद्धि महत्तरा ' रचित "अंजना चरित्र” उपलब्ध है । व्याख्यानादि न देने से ज्ञान का उपयोग नहीं होने के कारण ही वर्तमान काल में साध्वियां पठन पाठन में अधिक सचेष्ट नहीं होतीं यदि वें व्याख्यान देना आवश्यक समझेंगी तो उनका उत्साह व अभ्यास बढ़ेगा और ज्ञान का विकाश होने के साथ साथ श्रावक श्राविकाओं में भी धार्मिक ज्ञान की वृद्धि होगी और अन्य मतावलम्बी होने से रुक कर उभय समाज का लाभ एवं उत्कर्ष होगा ।
अगरचंद नाहटा
साध्वी संघनी उपयोगिता
लेखक - पार्श्वचन्द्र गच्छीय साध्वीजी श्री खांति श्रीजी
ता० २८,१०,४५ ना अंक ४१ पाना ५५७ पर 'समाजमां साध्विओंनु कर्त्तव्य' ए मथाला भाई वरजीवनदास वाडी लाले एक लेख आप्योछे; साध्वीश्रो समाज ने उपयोगी बने अने उच्च स्थाने आवे एवो एमनो आशय छे, परन्तु ए लेखनी अंदर जे वस्तुस्थिति जणावी के ते केटलीक भयभरेली भने अयोग्य छे ।
साधु करतां साध्वीश्रो समाज ने ओछी उपयोगी छे ते ए भाई कई श्रांखे जोई शकता हशे ? कारण के खरतर गच्छीय, पार्श्वचन्द्रगछीय, अंचलगच्छीय, सुधर्मगच्छीय भने स्थानकवासी संप्रदायनी अनेक साध्वीश्रो जुदा जुदा देशोंमां विचरी, व्याख्यानो आपी, पोते मेलवेल ज्ञाननो उपयोग समाजमा छूटथी करी रहेल छे तेमज धार्मिक कार्यो करावी प्रभाव पाडे छे मने दीक्षित थये २८ वरस थवा आव्यां, ते दरम्यान कच्छ काठियाबाढ़, गुजरात, मारवाड़ (बीकानेर) सुधीना परिभ्रमणमां में ते अनुभव्युं छे, नाना मोठा
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