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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
वीतराग के जैन शासन में साध्वी समाज को धर्मोपदेश देकर दूसरों के कल्याण करने का साधुओं के समान ही अधिकार है, जिस पर भीअभी कई अनसमझ लोगों को यह बात समझ में नहीं आई है, उन्होंको ऊपर में जो जो शास्त्रों के प्रमाण हमने बतलाये हैं, उन्हों पर दीर्घ दृष्टि से विचार करके अपनी भूल सुधारना और सत्य बात ग्रहण करना उचित है। ग्यारह अंग मूल सूत्रों का पढ़ना, उसका अर्थ सीखना, उस मुजब अपना आत्मकल्याण करना यह तो लाभ का हेतु कहना और उन्हीं सूत्रार्थ को दूसरे भव्यजीव-श्रावक आदि को सुना कर उन्होंको अपनी आत्मा के कल्याण का मार्ग बतलाना, इसमें अलाभ पाप दोष बतलाना यह कैसा भारी अन्याय है इसका विचार सजन पाठक अपने आपही कर लेवे ।।
३४-जो महाशय ऐसा कहते हैं कि "याकिनी महत्तरा" साध्वी ने हरिभद्र भट्ट को " चक्कीदग्गं" इत्यादि एक गाथा का अर्थ न बतलाया तो फिर साध्वी सभा में व्याख्यान करके सूत्रों का अर्थ कैसे बतला सकती है। ऐसी शंका भी अनुचित है। क्योंकि वह साध्वी अकेली थी और शाम का समय था। हरिभद्र भट्ट ने रास्ते चलते यह पूछा था, वह भी अकेला था और अन्य मतावलम्बी था और अपरिचित भी था उसके साथ अकेली साध्वी को शास्त्रीय वार्तालाप करना उचित नहीं था, अतः इस साध्वी ने हरिभद्र भट्ट को एक गाथा का अर्थ न बतलाया, परन्तु गुरु महाराज के पास में जाकर समझ लेने का कहा, किन्तु अभी साध्वी व्याख्यान बांचेगी वह तो समुदाय में बांचेगी, इसलिए अप्रासंगिक अकेले व अन्य मतवाले हरिभद्र भट्ट का दृष्टान्त बतलाकर हजारों श्रावकश्राविकाओं के धर्म श्रवण में अन्तराय डालना उचित नहीं है।
जिस जगह आचार्य, उपाध्याय और अपने गुरु आदि बड़े पुरुष विराजमान हों और वहां पर सामान्य साधु गौचरी आदि के लिए गया हो वहां उसे कोई श्रावक-श्राविकादि प्रश्न पूछे तो अपने बडे पुरुषों के पास जाकर समाधान करने के लिये कह देवे, किन्तु आप वहां अपनी पंडिताई बतलाने के लिए प्रश्न का उत्तर न देवे, इस प्रकार बडे पुरुषों की विनय भक्ति बहुमान की मर्यादा है इसी प्रकार से याकिनी साध्वी ने हरिभद्र भट्ट को एक गाथा का अर्थ न बतलाकर अपने आचार्य महाराज के पास जाकर समझने का कह दिया, यह उसकी अपने पूज्य पुरुषों के प्रति विनय भक्ति और बहुमान की मर्यादा व बुद्धिमत्ता थी। इस बातका भावार्थ न समझ कर साध्वियों को श्रावक-श्राविकाओं की सभामें व्याख्यान बांचने का निषेध समझ रक्खा है, यह उनकी बडी भूल है। __ हरिभद्रभट्ट ही दीक्षा लेकर श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज हुए हैं उन्होंने अपने बनाये " संबोध प्रकरण" में तथा "दशवैकालिक" सूत्र की बडी टीका में साधु के समान
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