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________________ मिथ्यात्विक्रियाधिकारः। डाणं फल वित्तिविसेसे सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति सफले कल्लाणे पावए पञ्चायंति जीवा अत्थि नेरइया देवा सिद्धि से एवंवादी एवंपन्ने एवंदिट्ठी छन्दरागमतिनिविठ्ठ आविभवइ से भवइ महेच्छे जाव उत्तर गामिए नेरइए सुक्कपक्खिए आगमेसाणं सुलभ वोहियावि भवइ सेतं किरियावादी सव्वधम्मरुचियावि भवई".... (दशाश्रु त स्कन्ध सूत्र). इसका टीकानुसार अर्थ यह है(प्रश्न ) क्रियावादी किसे कहते हैं ? (उत्तर) जो शास्त्रोक्त आत्मादिपदार्थो को सत्य और मोक्षोपयोगी पदार्थो को उपादेय तथा उसके प्रतिकूल वस्तुको हेय समझते हैं जो, जिसका जैसा स्वरूप है उसे उसी तरह अविपरीत बतलाते हैं और आस्तिकताके समर्थक सम्यग्दृष्टि हैं जो, मोक्षकी नित्यता और स्वर्ग, नरक, माता, पिता, इहलोक, परलोक, अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, इनका अस्तित्व मानते हैं। जो शुभ और अशुभ कर्मों का क्रमशः शुभ तथा अशुभ फल होना स्वीकार करते हैं जो शुभाशुभ कर्मों का फल भोगनेके लिये आत्माको विविध योनियों में जाना अङ्गीकार करते हैं जो नरक, मनुष्य, तिर्यञ्च, देवता, और मुक्तिको सत्य बताते हैं तथा पूर्वोक्त सभी बातोंमें जिसकी निश्चयात्मक मान्यता है वे क्रियावादी कहलाते हैं। ऐसे क्रियावादी यदि महारंभी महापरिग्रही और महान् इच्छावाले हों तो उत्तरपथगामी नरकयोनिमें जन्म पाते हैं परन्तु वे शुक्लपक्षीय और भविष्यमें सुलभ वोधी होते हैं । यह उक्त मूलपाठका अर्थ है। इसमें कहा है कि जो क्रियावादी मनुष्य महारंभी महापरिग्रही और महान् इच्छा वाले होते हैं वे उत्तरपथगामी नरकयोनिमें जाते हैं। यदि सभी क्रियावादी एक वैमानिक की ही आयु बांधते तो इस पाठमें क्रियावादी मनुष्यको नरकयोनिमें जाना कैसे कहा जाता ? अत: भगवती सूत्र शतक ३० उद्देशा १ में विशिष्ट क्रियावादीके लिए ही वैमानिकके आयुबंधका नियम कियाजाना समझना चाहिये सभी क्रियावादियोंके लिये नहीं। ___ इस विषयमें भगवती सूत्र शतक १ उद्देशा २ का मूलपाठ भी प्रमाण है । वह पाठ यह है "अविराहिय संजमाणं जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे उकोसेणं स... ब्बठ्ठसिद्ध विमाणं। विराहिय संजमाणं जहण्णेणं भुवणवासिखें: उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे । अविराहिय संजमासंजमाणं जहण्णणं सो . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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