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________________ . २६ . सद्धर्ममण्डनम्। पानीमें बार बार डुब्बी लगाते हैं जो पानीमें डुब्बी लगाकर बहुत देर तक रहते हैं जो शरीर में मृत्तिका लगाकर स्नान करते हैं जो गंगाके दक्षिण तटपर रहते हैं जो गंगाके उत्तर तटपर रहते हैं जो शङ्ख बजा कर भोजन करते हैं जो तटके ऊपर शब्द करके भोजन करते हैं जो मृग मार कर उसके मांससे बहुत दिन तक अपना निर्वाह करते हैं जो हाथी मार कर उसके मांससे चिरकाल तक अपना उदर पालते हैं जो दिशाओंके अन्दर जल छिड़क कर फल तोड़ते हैं जो दण्डको ऊंचा करके भोजन करते हैं जो वृक्षके छिलके पहिनते हैं जो जलमें निवास करते हैं जो विल बना कर रहते हैं जो जलमें प्रवेश करके रहते हैं जो समुद्रके तट पर रहते हैं जो वृक्षकी जड़में निवास करते हैं जो पानी पीकर रहते हैं जो हवा पीकर रहते हैं जो शैवाल खाकर रहते हैं जो कन्द, मूल, त्वचा, पत्ते फूल और फल खाकर रहते हैं जो सड़े गले कन्द मूल फल आदिको खाकर रहते हैं जिनका शरीर जल स्नान करनेसे कठिन हो गया है जिनका शरीर पञ्चाग्नि तापनेसे कोयला, कडाही और अधजले काठकी तरह काला हो गया है ये सब तापस बहुत वर्षों तक अपनी प्रव्रज्याका पालन करके काल आने पर मृत्युको प्राप्त होकर उत्कृष्ट ज्योतिष्क नामक देव लोकमें जाते हैं। वहां पर उनकी एक पल्योपम और एक लाख वर्षतक स्थिति होती है। शेष पूर्ववत् जानना चाहिये। ये सब तापस भी परलोक (मोक्षमार्ग) के आराधक नहीं हैं । यह ऊपर लिखे हुए मूल पाठका अर्थ है । इस पाठमें कहा है कि जो अज्ञानी तापस कन्द मूल फलादिका आहार करके, पंचाग्नि तापकर अग्निहोत्र करके तथा जलमें शयन आदि करके एक पल्योपम और एक लाख वर्षकी आयुके देवता होते हैं वे परलोकके आराधक नहीं हैं। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि संवर रहित निर्जरा की करनी मोक्षमार्गकी आराधनामें नहीं है क्योंकि उक्त पाठमें गिनाये हुए तपस्वी संवर रहित निर्जराकी करनी करते हैं तो भी उन्हें मोक्ष मार्ग का आराधक न होना कहा गया है। यदि संवर रहित निर्जराकी करनी मोक्ष मार्गके आराधनमें होती तो उक्त तपस्वी मोक्षमार्गके अनाराधक क्यों कहे जाते ? अतः संवर रहित निर्जराकी करनीको मोक्षमार्गमें कायम करना प्रत्यक्ष मूल पाठसे विरुद्ध समझना चाहिए। (बोल ग्यारहवां समाप्त) (प्ररूपक) छठे बोलसे लेकर ग्यारहवें बोल तक उवाई सूत्रके मूल पाठोंकी साक्षीसे संवर रहित निर्जराकी क्रियाको मोक्ष मार्गके आराधनमें न होना कहा गया है। उवाई सूत्रमें इस विषय पर और भी पाठ आये हैं। इन सभी पाठोंमें संवर रहित निर्जराकी करनीको और इन कार्योका आचरण करने वाले अज्ञानी तापसोंको अलग अलग गिन कर यह स्पष्ट कहा गया है कि ये अज्ञानी तापस मोक्षमार्गके आराधक नहीं हैं। यह देखते हुए निःस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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