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________________ ମୃ8 ४९७ ४९८ [ ५६ ] अशुद्ध मौनन्द्रागम उपयोग तथापि सल्लो, प्रमाजन सुन्नधास्स अलसीके काण्डकी टट्ट से प्रम जन ५०३ ५०४ शुद्ध मौनीन्द्रागम उपभोग अतएव सल्लोयं प्रमार्जन सुन्नघरस्स सणके प्रमार्जन करके अन्तो ५०६ कके ५०८ ५०९ ५१० पान्तो खले वाघ्राइय व्याघ्रादयः परिशिष्ट। पृष्ठ ६१, पंक्ति चौथीके १५ वें अक्षरके आगेका छुटा हुआ पाठ यह है : "विसुज्झमाणेविजाणई" पृष्ठ ७६, पंक्ति १७ के २३ अक्षरके आगेका पाठ यह है : "अणाराहगा" पृष्ठ १६७, पंक्ति ११ के १४ अक्षरके आगेका छूटा हुआ पाठ यह है : "किंवा दचा" पृष्ठ २६८ पंक्ति २२ के दश अक्षरके आगे का छूटा हुआ वाक्य यह है :-- "वास्तवमें शास्त्रसे मिलती हुई सभी चूर्णी मान्य हैं। पृष्ठ ३२३ के चौथी पंक्तिके आगेका छूटा हुआ बोल यह है : ( बोल १२) ३३५ पृष्ठके २९ वीं पक्तिके आगेका छूटा हुआ वाक्य यह है : "जहां जहां आरम्भ है वहां सर्वत्र यदि कृष्ण लेश्या है तो फिर शुक्ल लेश्या केवल अनारम्भो में ही पाई जानी चाहिये परन्तु वह आरम्भीमें भी पाई जातो है अत: पूर्वोक्त नियम मिथ्या है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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