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३११
३१४
३१८
[ ५४ ]
अशुद्ध अनेक दिनके तिर्णय दोष अप्रतिसेवी
बोल (०) गाथाका अर्थ है छद्यस्थ गोशालको टोकामें
३२४
अनेक वर्षाके
निर्णय दोषका अप्रतिसेवी
बोल १२ वां पाठका अर्थ है
उद्मस्थ गोशालक को
अर्थमें लेश्या पञ्चक्खाण
३२९ ३४८ ३४९
.kene
३५२ ३५४
पञ्चक्खाण द्ररु गच्छज्जा सादिका स्वीकारए भगवक्ति
३५५
गच्छेज्जा आदिका सीरीकारए भगवद्भक्ति
२६१
३६९
भंगमें
भंगोंमें कतव्य है श्रावकोंको ............ सूत्रको
३७५ ३७९ ३८०
अथ करान वाले
३८२
Sunnsxxe. comr
३८३ ३८४ ३८७ ३८९ ३९१
धम बुद्धिसे अण्णपरेण भगवतो शत १५ असातना निर्जराक असनानुप्रदान मुनियोंको वाहर कुप्रावाचनिक सिरलावत हर्ष के साथ अपने शिष्योंको
कर्तव्य है
श्रावकों के श्रु० २ अ० ३ उ०२
सूत्रका
अर्थ कराने वाले धर्म बुद्धिसे
अण्णयरेण भगवती शतक २५
अनासातना निर्जराका आसनानुप्रदान मनियोंको
वारह कुप्रावनिक सिरसावत्त
धर्मके साथ अपने ७०० शिष्योंको
३९२
३९६ ३९८ ४८५ ४०६
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