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सूत्र पठनाधिकारः ।
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प्रतिज्ञा और सत्य भाषण किया है । देवेन्द्र और नरेन्द्रोंने सत्यभाषणका धर्मादिरूप प्रयोजन मनुष्यों को बतलाया है अथवा देवेन्द्र और नरेन्द्रों को सत्य भाषणका प्रयोजन प्रतिभासित हुआ है अथवा सत्यने ही देवेन्द्र और नरेन्द्रों को जिनवचनरूपसे जीवादि पदार्थका ज्ञान कराया है । इस सत्यको वैमानिक देवोंने भी स्वीकार किया है अथवा वैमानिक देवोंने सत्य का सेवन और समर्थन किया है। यह सत्य बड़े बड़े प्रयोजनों को सिद्ध करता है । सत्य के विना मन्त्र औषधि विद्याएं भी सिद्ध नहीं होतीं । यह उक्त मूलपाठका टीकानुसार भावार्थ है ।
यहां मूलपाठमें सत्य रूप महाव्रतका माहात्म्य बतलाया है, शास्त्र पढ़ने पढ़ानेका कुछ जिक्र भी नहीं है इसलिये इस पाठका नाम लेकर श्रावकोंको शास्त्र पढ़नेका निषेध करना अज्ञानमूलक है। यहां मूलपाठमें सत्यकी प्रशंसा करतेहुए जो यह लिखा है कि – “महरिसीणय समयपइन्नंदेविन्द नरिन्दभासियत्थं” इसका टीकाकार ने यह अर्थ किया है
"महर्षीणाञ्च समयेन सिद्धान्तेन प्रदत्तम् ” देवेन्द्रनरेन्द्राणां भासितोऽर्थः प्रयोजनं यस्य तत्तथा । ",
अर्थात् बड़े बड़े ऋषियोंके सिद्धान्तसे सत्य दिया हुआ है और देवेन्द्र और नरेद्रों सत्यका प्रयोजन प्रतिभासित हुआ है ।
इन पदोंसे सत्य रूप महात्रतकी प्रशंसा की गयी है परन्तु शास्त्र पढ़ने पढ़ाने के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है तथापि इन्हीं पदोंका अर्थ करते हुए जीतमलजी बतलाते हैं। कि "उत्तम ऋषि महर्षियोंको ही शास्त्र पढ़नेका अधिकार है । देवेन्द्र और नरेन्द्रों को सूत्र के अर्थ जाननेका ही अधिकार है इत्यादि,” परन्तु उक्त पदों का ऐसा अर्थ त्रिकालमें भी नहीं हो सकता अत: भ्रमविध्वंसनकारका यह अर्थ करना उनके अज्ञानका सूचक है । टीकाकारने " महऋषीणां समयेन प्रदत्त" ऐसा तृतीया तत्पुरुष दिखलाकर साफ बतला दिया है कि सत्य वचन, महर्षियोंके सिद्धान्तसे दिया गया है अतः महर्षियोंकोही सिद्धांत दिये जानेका अर्थ सर्वथा मिथ्या और व्युत्पत्तिसे विरुद्ध । है । इसी तरह देवेन्द्र और नरेन्द्रों को केवल अर्थ जाननेका ही अधिकार है, यह उक्त दूसरे विशेषणका तात्पर्य्य बतलाना भी अज्ञान है क्योंकि टीकाकारने साफ साफ कह दिया है कि "अर्थ" शब्दका यहां प्रयोजन अर्थ है शब्दका या सूत्रका अर्थ नहीं। व्यतः उक्त दोनों विशेषणोंका व्युत्पत्ति विरुद्ध उन्मत्त प्रलाप जैसा मनमाना अथ करके श्रावकको शास्त्र पढ़नेका निषेध करना मुर्खताका परिणाम समझना चाहिये ।
बोल ३
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