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________________ सूत्रपठनाधिकारः । ४७३ - उत्तराध्यन सूत्रके २२ वें अध्ययनमें राजमतीके लिये यह पाठ आया है कि"सीलवंता वहुस्सुया" ___ अर्थात् राजकन्या रानमती बड़ी शीलवती और वहुश्रुत थी । यदि श्रावकको शास्त्र पढ़नेका अधिकार हो नहीं है तो शास्त्र पढ़े बिना गजमती बहुश्रुत कैसे हुई थी ? ___ भगवती उवाई और सुयगडांग आदि सूत्रोंमें श्रावकों का वर्णन करनेके लिये यह पाठ आया है कि "अस्सव संवर निजा किरिया अहिगरणवन्धमोक्खकुसला" इस पाठमें श्रावकको १२ प्रकारकी निर्जगमें कुशल होना कहा है और निजंग का दशवां मेद स्वाध्याय है । स्वाध्यायके पांच भेद होते हैं-(१) वाचना (२) पुच्छना (३) पर्याटना (४) अनुत्प्रेक्षा (५) धर्मक्था । इन पाचों प्रकारके स्वाध्यायोंमें वही कुशल हो सकता है जो सूत्र भी पढ़ता हो और अर्थ भी पढ़ता हो, जो सूत्र पढ़ने का अधिकारी ही नहीं है वह उक्त स्वाध्यायके पांच भेदोंमें कुशल नहीं हो सकता। जो स्वाध्यायमें कुशल नहीं है वह बारह प्रकारको निर्जरा में भी कुशल नहीं हो सकता परन्तु श्रावक १२ प्रकारकी निर्जरामें कुशल होता है इसलिये वह पांच प्रकारके स्वाध्यायमें भी कुशल है। श्रावक पांच प्रकारके स्वाध्यायमें कुशल होता है इसलिये वह शास्त्र पढ़ने का भी अधिकारी है । ज्ञाता सूत्र में कहा है कि सुबुद्धि प्रधानने जितशत्रु राजाको विचित्र प्रकारसे केवलि प्रगीत धर्मका उपदेश दिया था। यदि श्रावक सूत्र नहीं पढ़ता तो सुबुद्धि प्रधान शास्त्र पढ़े बिना केवलि प्रणीत धर्मका उपदेश राजाको किस प्रकार दे सकता था ? शास्त्रमें जगह जगह श्रावकको “धम्मक्खाइ” कहा है । जो धर्मका यथार्थ प्रतिपादन करता है वह धर्माख्यायी कहा जाता है। यदि श्रावकको शास्त्र पढ़ने का अधिकार ही नहीं है तो शास्त्र पढ़े विना वह धर्माख्यायी (धर्मको कहनेवाला) कैसे हो सकता है ? अतः श्रावक को शास्त्र पढ़नेका अधिकार नहीं मानने वाले अज्ञानी हैं। बोल २ रा (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २६१ पर प्रश्नव्याकरणसूत्रका मूल पाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं - “अथ इहां कह्यो उत्तम महर्षि साधुने इज सूत्र भणवारी आज्ञा दीधी ते साधुसिद्धान्त भणीने सत्यवचन जाणे भाषे भने देवेन्द्र नरेन्द्रादिकने भाष्या अर्थ ते सांभली Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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