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सूत्रपठनाधिकारः।
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साठ बारह व्रतां तणा पन्द्रह कर्मादान"। . इस दोहामें भीषणजीने शास्त्र पढ़नेके उक्त चौदह अतिचार श्रावकोंके भी कहे हैं इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि शास्त्र पढ़नेका श्रावकोंको भी अधिकार है केवल साधुओंको ही नहीं अन्यथा आश्रवोंके उक्त चौदह अतिचार क्यों कहे जाते और भीषणजी भी उसे क्यों स्वीकार करते । अतः श्रावकोंका शास्त्र पढ़नेका एकान्त रूपसे निषेध करना अज्ञान मूलक समझना चाहिये।
बोल १ समाप्त (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकारका मत है कि श्रावकको प्रतिक्रमण सूत्र पढ़ने का तो अधिकार है परन्तु दूसरे सूत्रोंके पढ़ने का अधिकार नहीं है इसलिये ये चौदह ज्ञानके अतिचार श्रावकोंके भी कहे हैं।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
_भ्रमविध्वंसनकारका यह मत असंगत है क्योंकि उक्त चौदह अतिचारोंमें कालमें स्वाध्याय न करना और अकालमें स्वाध्याय करना भी गिने गये हैं । ये अतिचार आवश्यक सूत्रके पढ़नेमें नहीं लगते क्योंकि आवश्यक सूत्रके पढ़नेमें कोई काल विशेष का नियम नहीं है जिसके पढ़नेमें काल विशेषका नियम है उन्हीं के पढ़नेमें ये अतिधार लगते है। यदि श्रावकको आवश्यकसे भिन्न सूत्रों के पढ़नेका अधिकार ही नहीं है तो फिर ये पूर्वोक्त दो अतिचार श्रावकोंके कैसे हो सकते हैं ? अत: अवश्यकके सिवाय दूसरे सूत्रों के पढ़ने का श्रावकों को अधिकार नहीं है यह कहने वालोंको अज्ञानी समझना चाहिये।
भीषणजीने, अकालमें स्वाध्याय करने और कालमें स्वाध्याय न करनेरूप अतिचार श्रावकोंके भी कहे हैं___"अकाले करे स्वञ्झाय हो श्रावक, काले स्वज्झाय करे नहीं। अस्वज्झायमें करे स्वज्झाय हो श्रावक, स्वज्झाय वेलां आलस करे जब ज्ञान थारो मेलो थायहो श्रावक, अतिचार लागे ज्ञानने"
(कडी तीसरी) इस भीषणजीके पद्यसे स्पष्ट सिद्ध होता है कि काल विशेषके साथ पढ़े जानेवाले आवश्यक सूत्रसे अतिरिक्त सूत्रों के पढ़नेका अधिकार श्रावकोंका भी है अन्यथा अकाल
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