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आश्रवाधिकारः ।
( टीका )
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" आयाते ! काए" इत्यादि । आत्मा कायः कायेन कृतस्यानुभवना न्नान्येन· कृतमन्योऽनुभवत्यकृताभ्यागमप्रसंगात् । अथान्य आत्मनः कायः कायैकदेशच्छेदेऽपि संवेदनस्य सम्पूर्णत्वेनाभ्युपगमादिति प्रश्नः । उत्तरंतु आत्मापि कायः कथंचित्तदव्यतिरेकात् क्षीर नीरवत अग्न्ययः पिण्डवत काभ्वनौपलवद्वा अतएव कायस्पर्शे सत्यात्मनः संवेदनं भवति । अतएव कायेन कृत मात्मना भवान्तरे वेद्यते अत्यन्त भेदेवाकृताभ्यागम प्रसंग इति । " अण्णेऽविकाए" ति अत्यन्ता भेदेहि शरीरांशच्छेदे जीवांशच्छेद प्रसंग: तथाच संवेदनस्यासं पूर्णतास्यात तथा शरीर दाहे आत्मनोऽपिदाहेन पर लोका भाव प्रसंग इत्यतः कथं चिदन्योऽप्यात्मनः काय इति । अन्यैस्तु कार्मण कायमाश्रित्यात्मकाय इति व्याख्यातम् । कार्मण कायस्य संसार्य्यात्मनश्च परस्परान्यभि - चारित्वेनकरूपत्वात् । “अण्णेऽविकाए" त्ति औदारिकादिकाया पेक्षया जीवादन्यः कायः द्विमोचनेन तद्भेदसिद्ध रिति "रुवीकाए" त्ति रूप्यपि कायः औदारिकादि कायस्थल रूपापेक्षया । अरूप्यपिकायः कार्मण कायस्यातिसूक्ष्मरूपित्वेनारूपित्व विवक्षणात ।”
अर्थ :
हे भगवन् ! आत्मा शरीरसे भिन्न है या शरीर स्वरूप है ?
हे गोतम ! आत्मा कथंचित शरीर स्वरूप है और कथंचित् शरीरसे भिन्न भी है।
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इस प्रश्नोत्तरका अभिप्राय यह है:
आत्मा शरीर स्वरूप है क्योंफि अरीरसे किये हुए का अनुभव आत्माको होता है । यदि आत्मा शरीर से जुदा होता तो शरीर से किये हुए का आत्माको अनुभव नहीं होता क्योंकि दूसरे से किये हुएका अनुभव दूसरे को नहीं होता अतः आत्माका शरीर स्वरूप होना सिद्ध होता है ।
आत्मा शरीरसे भिन्न है क्योंकि शरीरके किसी अवयवका विच्छेद होने पर भी ज्ञानका विच्छेद नहीं होता किन्तु ज्ञान पूर्णरूप में ही होता है। यदि व्यत्मा और शरीर एक होते तो. शरीर के किसी अवयवका विच्छेद होने पर सम्पूर्ण रूपसे ज्ञानका उदय नहीं होता । अतः आत्मा शरीर से भिन्न है । ये दो परस्पर विरुद्ध बातोंको देख कर आत्मा और शरीर भेद और अभेदका प्रश्न किया गया है। इसका उत्तर यह है :
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आत्मा, कथंचित शरीर स्वरूप भी है क्योंकि मिले हुए दूध जलकी तरह आग और लौह पिण्डकी तरह पत्थर और सोनेकी तरह आत्मा शरीर से एकाकार होकर रहता है | अतएव शरीरका स्पर्श होने पर उसका ज्ञान आत्माको होता है और शरीर से किये हुएका फल आत्माको जन्मान्तरमें मिलता है। यदि शरीर के साथ आत्मा का
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