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________________ ४४० सद्धर्ममण्डनम् । पुद्गल हैं तथापि जीवके साथ एकाकार होकर रहनेसे जैसे इन्हें भाव जीवका पर्याय कहा है उसी तरह दुग्ध जलवत जीवके साथ मिल कर एकाकार होकर रहने से गति आदिको ठाणांग ठाणा १० में जीवका परिणाम कहा है अत: गति आदि को भावरूप मान कर द्रव्य गति को जीव का परिणाम नहीं मानना मिथ्या समझना चाहिये। [बोल १४ वां समाप्त] (प्ररूपक) पन्नावणा सूत्रके पांचवें पदमें मनुष्य जीवके वर्ण, गन्ध, आदि पर्याय भी कहे हैं वह पाठ यह है: "मनुस्साणं भन्ते ! केवइया पजवा पण्णत्ता ? गोयमा ! अनंती पज्जवा पण्णत्ता। सेकेणढेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ मणुस्साणं अणंता पजवा पण्णात्ता ? गोयमा ! मणुस्से मणुस दध्वट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहण कृयाए चउठाण वडिए ठीए चउठाण वडिए वन्नगंधरसफासआभिणियोहियणाणओहिणाणमनपज्जवणाण केवल णाण पज्जवेंहिं तुल्ले तिहिं दसणेहिं छट्ठाण वणिए केवल दसण पज्जवेहि तुल्ले" (पन्नावणा पद ५) इस पाठमें मनुष्य जीवके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, पर्याय कहे हैं। वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रूपी और पौद गलिक हैं तो भी क्षीर नीरकी तरह जीवके साथ मिले हुए होनेसे इन्हें जीवका पर्याय कहा है उसी तरह ठाणांग ठाणा दशमें, जीव के साथ मिले हुए होनेसे गति आदिको जीवका परिणाम कहा है। भगवती शतक १२ उद्देशा १० में आत्माको रूपी और अरूपी दोनों ही प्रकार का कहा है वह पाठ यह है। "कइ विहाणं भन्ते ! आया पण्णत्ता १ गोयमा ! अठविहा आया पण्णत्ता तंजहा-दवि आयो, कसायाया, जोगाया, उपयोगाया, णाणाया, दसणाया, चरिताया, वीरियाया" (भगवती शतक १२ उ० १०) अर्थ : हे भगवन् ! आत्मा के प्रकारका होता है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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