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________________ सद्धर्ममण्डनम् । सूत्रोंमें जीव कह कर बतलाया है इसलिये शुभाशुभ कर्मोंसे बंधा हुआ जीवात्मा ही व्यवहार दशामें जीव कहलाता है। गति और जाति आदि जीवसे अलग कहे जाते हों और जीव उनसे अलग कहा जाता हो यह बात नहीं है अतः पुण्य, पाप, और वन्ध भी व्यवहार दशामें जीव ही हैं अजीव नहीं हैं इन्हें एकांत अजीव कहना अज्ञान है । [बोल ३ समाप्त ] (प्रेरक) पुण्य पाप और वन्ध रूपी हैं और जीव अरूपी है फिर ये दोनों एक कैसे हो सकते हैं ? (प्ररूपक) व्यवहार दशामें जीव भी रूपी माना गया है । भगवती शतक १७ उद्दे शा २ में जीवको रूपी होना बतलाया है । वह पाठ यह है "देवेणं भन्ते ! महिड्ढिए जाव महेसक्खे पुवामेव रुवी भवि त्ता पभू अख्वीविउ भवित्ताणं चिहित्तए ? णो इण? समढे सेकेणतुणं भन्ते ! एवं बुच्चइ देवेणं जोवणो पभू अस्वीविउ भवित्ताणं चिट्टित्तए ? गोयमा ! अहमेयं जाणामि अहमेयं पासामि अहमेयं वुज्झामि अहमेयं अभिसमण्णागच्छामि मए एवं णायं मए एयं दिट्ठमए एवं बुद्ध मए एवं अभिसमण्णागयं जपणं तहागयस्स जीवस्स सरूविस्स सकम्मस्स सरागस्स सवेदगरस समोहस्स सलेस्सस्स ससरीरस्स तआ सरीराओ अविप्पमुक्कस्स एवं पण्णायाति तंजहा कालवा जाव सुकिलत्तेवा, सुन्भिगंधतेवा, दुन्भिगंधतेवा तित्तत्तेवा जीव महुरत्तेवा कक्खड़त्तेवा जावलुक्खत्तेवा सेतण?णं गोयमा ! जाव चिठ्ठित्तए" (भगवती शतक १७ उद्दशा २) अर्थ:- हे भगवन् ! महेश नामक देवता जो कि बड़ा समृद्धि शाली और शरीरादि पुदगलोंके सम्बन्धसे रूपी है वह अरूपी होकर रह सकता है या नहीं ? . .. . (उत्तर) हे गोतम ! यह सम्भव नहीं है। (प्रश्न ) इसका क्या कारण है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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