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________________ सद्धममण्डनम् ___ अर्थात् जो पुरुष स्थूल प्राणातिपात आदिसे निवृत्त होकर दूसरे को भी नहीं मारने का उपदेश करता है वह माहन कहलाता है। यहां टीकाकारने पहले ही पहल माहन शब्दका श्रावक अर्था किया है। दूसरी बात यह है कि इस टीकाके आगे भगवती शतक २ उद्देशा ५ के अन्दर जो टीका आई है उसमें भी पहले पहल माहन शब्द का अर्थ साधु नहीं किया है । देखिये वह टीका यह है । "वथा रूपं मुचित स्वभावं कञ्चन पुरुषं श्रमणं वा तयोयुक्त मुपलक्षणत्वा दस्योसर गुणवन्त मित्यर्थः। माहनंवा स्वयं हनन निवृत्तत्वात्परंप्रतिमाहनेतिवादिनम् उपलक्षणत्वा देव मूल गुण युक्त मित्यर्थः । वाशब्दौ समुच्चये। अथवा श्रमणः साधुर्माहनः श्रावकः” अर्थात् जो कोई पुरुष उचित स्वभाव वाला तपस्यासे युक्त यानी उत्तर गुणसे युक्त हो वह श्रमण कहलाता है और जो स्वयं हिंसासे निवृत्त होकर दूसरेको नहीं मारनेका उपदेश देने वाला, यानी मूल गुगसे युक्त हो वह "माहन" कहलाता है। अथवा श्रमण नाम साधुका और माहन नाम श्रावकका है। यहां टीकाकारने पहले पहल श्रमण शब्दका । उत्तर गुण युक्त" और माहन शब्द का "मूलगुण युक्त" अर्थ किया है । मूल गुण और उत्तर गुण साधु और श्रावक दोनों के होते हैं केवल सांधुके ही नहीं इस लिये पहले अर्थ में श्रमण और माहन शब्दसे मूल गुण और उत्तर गुणसे युक्त साधु और श्रावक दोनों ही का ग्रहण होता है केवल साधुका ही नहीं। दूसरे अर्थमें तो टीकाकारने साफ साफ खोलकर लिख दिया है कि "श्रमण नाम साधुका और माहन नाम श्रावकका है।" अत: उक्त टीकाका नाम लेकर माहन शब्दका श्रावक अर्थ होनेमें टीकाकारको अरुचि बताना अज्ञानका परिणाम है। (बोल १० वां समाप्त ) (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २८७ के ऊपर भगवती सूत्र शतक १५ वें का मूलपाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं कि "अथ अठे सुनक्षत्र सर्वानुभूति मुनि गोशालाने कह्यो । हे गोशाला ! जे तथारूप श्रमण माहन कने एक वचन सीखे तेहने पिण वाद नमस्कार करे कल्याणिक मांगलिक देवयं चेइयं जाणीने घणी सेवा करे। इहां श्रमण माहन कने सीखे तेहने वन्दना नमस्कार करणी कही। पिण श्रमणोपासकने सीखे तेहने वंदना नमस्कार करणी इम न कह्यो । श्रमण माहननी सेवा कही पिण श्रमणोपासकरी सेवा न कही। एतो प्रत्यक्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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