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________________ वैयावृत्याधिकारः। णिवा, गड ढाओवा दरीओवा सइ परक्कमे संजयामेव परिकमिजा। नोउज्जुयं गच्छेन्ना केवली ब्रूया आयाण मेयं । तत्थ परकममाणे पपलिज्जदा २ सेतत्थ पयलमाणेवा रुक्खाणिवा गुच्छाणिवा लया ओवा वल्लोओवा तयाणिवा गहाणिवा, हरियाणिवा अवलम्क्यि उत्तरिज्जा। जे तत्थ पडिपहियावा उवागच्छंति ते पाणी जाइज्जा तओ संजयामेव अवलम्विय उत्तरिज्जा। तओ सं० गामानुगामं दुइज्जेज्जा". अर्थ: एक ग्रामसे दूसरे ग्राममें जाते हुए साधु या साध्वीको मार्गके अन्दर यदि क्यारी मिले या खाई; गड्ढा, तोरण, अर्गला, गर्त, या खोह मिले तो दूसरा मार्ग होने पर उस (गड्ढे आदि वाले) मार्गसे नहीं जाना चाहिये । क्योंकि उस मार्गसे जाने पर केवलोने कर्मबन्ध होमा कहा है। परन्तु दूसरा मार्ग नहीं होने पर उस मागसे जाने में दोष नहीं है। ऐसे कठिन मार्गसे जाता हुआ साधुकी यदि पैर फिसल जाय, तथा गिरनेकी नौबत आ जावे तो वह वृक्ष, लता, तृण या गहरी वनस्पतियोंको पकड़ कर उस मार्गसे पार हो जावे। अथवा जो कोई उस मार्गसे पथिक आता हो उसके हाथको सहायता लेकर जयणाके साथ उस कठिन मार्ग को पार करे। इसके पश्चात् प्रामानुग्राम विहार करे। यह इस पाठका अर्थ है। इसकी टीकामें भी लिखा है कि "अथ कारणिकस्तेनैव गच्छेत कथञ्चित पतितश्च गच्छगतो वल्ल्यादिकमवलम्व्य प्रातिपथिकं हस्तवा याचित्वा संयतएव गच्छेत् । अर्थात कारण पड़ने पर साधु उसी ( कठिन ) मार्गसे ही जावे। और किसी प्रकार गिरता हुआ स्थविर कल्पी साधु, लता आदिको पकड़ कर अथवा सम्मुख आते हुए पथिकके हाथका आश्रय लेकर जयणाके साथ उस मार्गको पार करे। जीतमलजी ने अपने प्रश्नोत्तर तत्ववोध नामक ग्रन्थ में ६३ वें प्रश्न के उत्तर में दूसरा मार्ग नहीं होने पर आचारांग सूत्रोक्त कठिन मार्ग से जाना लिखा है। जैसे कि: (प्रश्न)-विहार करतां मार्गमें पृथिवी हरी आयां तेणेइज मार्गे जावणो कि नहीं ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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