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________________ वैयावृत्याधिकारः । "पवयणसंवे गयरो लिङ्ग रयहरण मुहपत्ती" इसकी टीका यह है- ३६९ " " पत्रयण" त्ति प्रवचनतः साधर्मिकः संघमध्ये एकतरः श्रमणः श्रमणी ras: श्राविका चेति । लिंगे लिङ्गतः साधर्मिकः रजोहरण मुहपोत्तिका युक्तः" अर्थ: श्रमण, श्रमणी श्रावक और श्राविका इनमें से कोई भी प्रवचन के द्वारा साधर्मिक होता है और रजोहरण तथा मुखवस्त्रिका से युक्त लिङ्ग के द्वारा साधर्मिक होता है । यह उपर्युक गाथाका टीकानुसार अर्थ है । यहां के द्वारा साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इनमेंसे किसी को भी साधर्मिक होना कहा है। इस लिये प्रवचन के द्वारा श्रावक का साधर्मिक श्रावक भी होता है । तथा इसी भाष्यके १५ वीं गाथाकी टीकामें टीकाकारने लिंग और प्रवचन के 'द्वारा साधर्मिकों की एक चतुर्भगी कही है। उस के दूसरे भंगों में श्रावक को बतलाया है । वह टीका यह है " तथा प्रवचनतः साधर्मिको न पुनः लिंगे लिंगतः एष द्वितीयः । केते एवं भूता इत्याह- दशभवंति सशिखाकाः अमुण्डित शिरस्का: श्रावका इति गम्यते । श्रावका हि दर्शन व्रतादि प्रतिमा भेदेन एकादशविधा भवन्ति । तत्र दश सकेशाः - एकादशप्रतिमा प्रतिपन्नस्तु लुब्वितशिराः श्रमणभूतो भवति । ततस्तद्व्यवच्छेदाय सशिखाक ग्रहणम् । एतेहि दश सशिखाकाः श्रावकाः प्रवचनतः साधर्मिकाः भवति तेषां संघान्तभूतस्वात् नतु लिङ्गतो रजोहरणादि लिङ्ग रहितत्वात् ” अर्थात् प्रवचनके द्वारा जो साधर्मिक होता है और लिंगके द्वारा नहीं होता वह दूसरा भांगावाला साधर्मिक है। अब यह बतलाया जाता है कि इस दूसरे भांगावाले साधर्मिक कौन होते हैं । जिनके केश मुण्डत नहीं हैं जो शिखाधारी हैं ऐसे दश प्रकार के श्रावक इस दूसरे भंगके स्वामी हैं क्योंकि श्रावक, दर्शन, व्रतादि, और प्रतिमा भेदसे एग्यारह प्रकारके होते हैं । उनमें दश शिखाधारी होते हैं। और एग्यारहवीं प्रतिमाप्रतिपन्न, लुब्चितशिर और साधुके सदृश होता है। उसकी व्यावृत्तिके लिये इस दूसरे भांगा में शिखाधारी श्रावक कहा गया है। ये दश शिखाधारी श्रावक प्रवचनसे. साधर्मिक होते हैं । ४७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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