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( प्रेरक )
( अथ लेश्याधिकारः )
लेश्या किसे कहते हैं ?
प्ररूपक)
विश्यते श्लिष्यते कर्मणा सह आत्मा अनयेति लेश्या । कृष्णादिद्रव्य साचिव्यादात्मन: परिणाम विशेषे । "कृष्णादिद्रव्य साचिव्यात्परिणामोय आत्मनः । स्फटिकस्येव तत्रायं लेश्या शब्दः प्रयुज्यते " ॥१॥
अर्थात् जिसके द्वारा आत्माका कर्मके साथ सम्बन्ध होता है उसे लेश्या कहते हैं । व्यथवा कृष्णादि द्रव्यके संसर्गसे स्फटिक मणिकी तरह जो आत्माका परिणाम विशेष होता है उसे लेश्या कहते हैं । वह लेश्या दो प्रकारकी होती है एक द्रव्य लेश्या और दूसरी भाव लेश्या । भाव लेश्या मुख्य रूपसे द्रव्यके संसर्गसे पैदा होने वाला माका परिणाम है और द्रव्य लेश्या मुख्य रूपसे पुगलका परिणाम ( पर्याय) है । ( प्रेरक )
संयमधारी साधुओंमें कितनी लेश्यायें होती हैं ।
( प्ररूपक )
मधारी साधुओं में तेजः पद्म और शुक्ल ये तीन भाव लेश्यायें होती हैं, कुक्षा नील मौर कापोत भाव छेश्यायें नहीं होतीं । भगवती शतक १ उद्देशा १ में वह लिखा है इसलिये वहांका पाठ टीकाके साथ लिखा जाता है !
"सहसा जहा ओहियो किण्हलेसस्स नीललेसस्स काउलेसस जहा ओहिया जीवा णवरं पमत्ता पमत्ता न भाणियत्र्वा । तेउलेसस्स पश्मलेसस्स सुकलेसस्स जहा ओहिया जीवा णवरं सिद्धानभाणियच्चा
( भ० श० १३०१ )
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( टीका )
"लेस्साणं भन्ते ! जीवा किं आयारंभे" इत्यादि तदेव सर्व नवरं जीवस्थाने सश्या इतिवाच्यम् इत्ययमेको दण्डकः । कृष्णादिलेश्या भेदात् तदन्ये घट तदेवमेते
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