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बोल पाचवां पृष्ठ ३१० से ३१२ तक : उववाई सूत्रमें भगवान महावीर स्वामीके शिष्योंमें पाप और प्रमाद होने का निषेध नहीं किया है इसलिये उनके दृष्टान्तसे भगवान महावीर स्वामीमें दोषका स्थापन करना मिथ्या है।
..... बोल छट्ठा ३१२ से ३१३ तक . .उधवाई सूत्रमें यह नहीं कहा है कि कौणिक गजा कभी भी माता पिताका अविनीत नहीं था परन्तु आचारांग सूत्रमें कहा है कि भगवान महावीर स्वामीने कभी भी पाप और प्रमादका सेवन नहीं किया था अत: कौणिकके दृष्टान्तसे भगवान महावीर स्वामीमें दोषका स्थापन करना अज्ञान है।
बोल सातवां पृष्ठ ३१३ से ३१४ तक उवबाई सूत्रमें श्रावकोंको पापसे सर्वथा हटा हुआ नहीं कहा है परन्तु आचारांग में भगवान को पाप और प्रमादसे सर्वथा हटा हुआ कहा है अतः श्रावकके दृष्टान्तसे भी भगवान्में पापका स्थापन करना अज्ञान है।
___ बोल आठवां पृष्ठ ३१४ से ३१७ तक ____ जिस समय गोतम स्वामी आनन्द के घर पर बचन बोलने में चूक गये थे उस समय उन में कषाय कुशील नियण्ठा तथा चौदहपूर्वका ज्ञान नहीं था।
बोल नवां पृष्ठ ३१७ से ३१८ तक . दशवकालिक सूत्रके आठवें अध्ययनके दशवीं गाथामें जो दृष्टिवादका अध्ययन कर रहा है उसोका वाकस्खलन होना लिखा है परन्तु जिसने दृष्टिवादका अध्ययन कर लिया है उसका वास्खलन होना नहीं कहा है।
___ बोल दशवां ३१८ से ३२० तक भगवती शतक २५ उ० ६ में स्पष्ट लिखा है कि कषाय कुशील दोषका अप्रति
सेवो होता है।
बोल एग्यारहवां पृष्ठ ३२० से ३२१ तक
जिस सम्वुडा साधुका सच्चा स्वप्न देखनेका शास्त्रमें वर्णन है उसीका झूठा स्वप्न देखनेका भी शास्त्रमें पाठ है परन्तु कषाय कुशीलके चूचनेका शास्त्र में कहीं भी पाठ नहीं है।
बोल बारहवां पृष्ठ ३२२ से ३२३ तक ठाणाङ्ग ठाणा सातके मूल पाठमें यह नहीं कहा है कि सभी छद्मस्थ सात दोषके सेवी ही होते हैं अतः उक्त पाठका उदाहरण देकर भगवानमें दोषा सद्भाव कहना मूर्खता है।
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